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यजुर्वेद १०-१ (10-1)
अ॒पो दे॒वा मधु॑मतीरगृभ्ण॒न्नूर्ज॑स्वती राज॒स्व॒श्चिता॑नाः । भि॑र्मि॒त्रावरु॑णाव॒भ्यषि॑ञ्च॒न्याभि॒रिन्द्र॒मन॑य॒न्नत्यरा॑तीः ॥
भावार्थ:- मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के सहाय से जल वा प्राणों की परीक्षा करके उनसे उपयोग लेवें। शत्रुओं को निवृत्त करके प्रजा के साथ प्राणों के समान प्रीति से वर्ते और इन जल तथा प्राणों से उपकार लेवें।।
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