साम वन्दना
स्वस्तितम्
ॐ स्वस्तितम् मे सुप्रातः सुदिवम सुमृगम सुशकुनम मे अस्तु !
सुहमग्ने स्वस्त्यः मृत्यः गत्वा पुनरायभिनन्दनम् !! (अथर्व १९.८.३)
हे परमेश ये आवाह्न मम ! हों स्वस्तितम् हों स्वस्तितम् !
१. अरुणिम प्रभात स्वर्णिम संध्या ! हों दिवस दिव्य गौरव गंध्या !
पग प्रगति मोद प्रभु अनुबन्ध्या, हों कृत्य मेरे जग मंगलम ! हों स्वस्तितम् …
२, प्रिय पशुगण के अवदान कृतं ! कृमि पक्षी वृक्ष के मृदु सरगम !
हो सुखद स्वस्थ इनके अनुगम ! दें मुझको ये सम्पदा शुभम ! हो स्वस्तितम्…
३, कट जाएँ बंधन के क्रंदन ! हों श्रुति स्पंदन पथ स्पंदन !
लाएं प्रभु वंदन अभिनन्दन ! प्रिय परमार्थ की सरणी सुगम ! हों स्वस्तितम्…
४. यही जगत अभ्युदय कराएं ! श्रेय मिलाएं प्रेय दिशाएँ !
कर्मशील हों उपासनाएँ ! दे जाएँ अमरता का संगम ! हों स्वस्तितम्…
५. नित गीत मैं निष्काम गाऊं ! मृदु मुक्ति का प्रभु धाम पाऊँ !
फिर लौट कर भू ग्राम आऊँ ! संचालित रखूं कल्याण क्रम ! हों स्वस्तितम्…
(प्रेरक रचना : पं. देवनारायण भारद्वाज)
राजेन्द्र आर्य
३६२-ऐ, गुरु नानक पूरा ,
सुनामी गेट, संगरूर -१४८००१ (पंजाब
चलभाष: ९०४१३-४२४८
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