३ कार्तिक 20 अक्टूबर 2015
😶 “ राज्यशासन और शिक्षा शासन का महान् आधार-ब्रह्मचर्य व तप ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्रं वि रक्षति। 🔥🔥
🍃🍂 आचार्यो ब्रह्मचर्येण ब्रह्मचारिणमिच्छते।। 🍂🍃
अथर्व० ११ । ५ । १७
ऋषि:- ब्रह्मा: ।। देवता- ब्रह्मचारी: ।। छन्द:- अनुष्टुप् ।।
शब्दार्थ- राजा ब्रह्मचर्य के तप द्वारा राष्ट्र की ठीक-ठीक रक्षा करता है और आचार्य ब्रह्मचर्य से ही ब्रह्मचारी को चाहता है।
विनय:- जो राजा अजितेन्द्रिय, विलासी होता है उसके दुर्बल हाथों में राज्य की बागडोर संभाली नहीं रह सकती, क्योंकि जिस सरकार के अधिकारी व कर्मचारी विष्यलोलुप, आचारहीन और लम्पट होते हैं उसकी प्रजा आरक्षित हो जाती है, एवं पीड़ित और दुःखी होती हुई वह प्रजा सरकार को शाप देती रहती है। ऐसी सरकार शीघ्र ही च्युत हो जाती है, अतः हे राजाओ! यदि तुम सचमुच राज्य करना चाहते हो, प्रजा का ठीक-ठीक रञ्जन और रक्षण करना चाहते हो, प्रजा को धनसमृद्ध, ज्ञानविकसित और उन्नत बनाना चाहते हो तो तुम ब्रह्मचारी और तपस्वी बनो। तुम अपने जीवन को सदा संयमी और तेजस्वी बनाओ।
इसी तरह जो आचर्य शिष्य को शिक्षित करना चाहते है, उसे ब्रह्मचारी रखकर वेदज्ञान देना चाहता है, उसे स्वयं ब्रह्मचारी होना चाहिए, बड़ा उन्नत ब्रह्मचारी होना चाहिए। नहीं तो उसे ब्रह्मचारियों की इच्छा ही नहीं करनी चाहिए। वास्तव में यह आचार्य का अपना ब्रह्मचर्यमय जीवन ही होता है जिसके कारण वह इच्छा करता है कि और भी बहुत-से लोग ब्रह्मचारी बनें वह चाहता है कि जितने ब्रह्मचारी बनें उतने थोड़े हैं। सचमुच आचार्य अपने ब्रह्मचर्य के बल द्वारा ही ब्रह्मचारियों को आकृष्ट करता है, उनपर शासन करता है, उन्हें अपने वश में रखता है, अपने से जोड़े रखता है और उन्हें ब्रह्मामृत पिलाता हुआ परिपुष्ट करता रहता है।
एवं, कोई भी शासन-राज्यशासन या शिक्षाशासन, क्षत्रिय का शासन या ब्राह्मण का शासन-ब्रह्मचर्य के बिना नहीं चल सकता।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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