आज का सुविचार (31 अक्टूबर 2015, शनिवार, कार्तिक कृष्ण ५)
अपापविद्धम्- अपाप से युक्त होकर सिद्ध हो जाओ। दो व्यवस्थाएं होती हैं 1) पाप-विद्धम्, 2) अपाप-विद्धम। तीन तरह के आदमी होते हैं 1) निरक्षर, 2) साक्षर, 3) नाक्षर। निरक्षर वह है जो अक्षर नहीं पढ़ सकता। सारा प्राणी जगत् निरक्षर है। हर मानव मूलतः निरक्षर नहीं है। जब भौतिक अक्षर नहीं थे, तो अक्षर ज्यादा सशक्त थे। श्रुती अक्षर थे। इन्द्रियों के माध्यम से दुनिया पढ़ना पढ़कर यथावत निर्णय लेना, आचरण करना हर मानव में स्वनिर्मित है। वह मानव निरक्षर हैं जो जगत् पढ़ कर निर्णय न ले। यथार्थवादी निरक्षर हैं। व्यंगवादी निरक्षर हैं। व्यंग मे यथार्थ लिख रहे हैं अनिर्णय अवस्था रहते। परिणामतः भ्रष्टाचार बढता जा रहा है। मैंने शेर देखा, मैंने शेर लिखा, उसके भयानक पंजे, भयानक जबड़े, उसका झपटना लिखा और शेर ने मुझे खा लिया। यह यथार्थवाद की भयावह नियति है। इससे हटकर भी एक स्थिति है- गुरु दत्तचित्त शिष्यों को पढ़ा रहे थे, शिष्य शब्द-अर्थ-व्युत्पत्ति पूछ रहे थे। गुरु दत्तचित्त समझा रहे थे। वहां व्याघ्र आ गया.. शिष्य चिल्लाया व्याघ्र.. गुरु समझाने लगे- व्याघ्र जो भयानक झपट्टा मारकर खा जाए उसे…। और व्याघ्र ने गुरु को खा लिया। शिष्य सब भाग गए थे। घटना विवेचन पाठकों पर है। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)
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