९ कार्तिक 25 अक्टूबर 2015
😶 “ हे वरुण! हमें अनृत-असत्य से मुक्त करो ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् बह्वी३दं राजन् वरुणानृतमाह पूरुष:। 🔥🔥
🍃🍂 तस्मात् सहस्त्रवीर्य मुञ्च न: पर्यहस: ।। 🍂🍃
अथर्व० १९ । ४४ ।८
ऋषि:- भृगु: ।। देवता- वरुण: ।। छन्द:- अनुष्टुप्।।
शब्दार्थ- हे पापनिवारक! हे सच्चे राजा! मनुष्य यह (तुच्छ-तुच्छ) बहुत झूठ बोलता है। उस पाप से, हे अपरिमित वीर्यवाले! तू हमें सब ओर से मुक्त कर दे।
विनय:- हे सच्चे राजा, हे पापनाशक! मनुष्य बहुत अनृत बोला करता है और बड़ी तुच्छ-तुच्छ बातों पर अनृत बोला करता है। प्रातः से लेकर रात्रि तक एक दिन में ही न जाने कितनी बार असत्यभाषण करता है। हम मनुष्यों का जीवन इतना अनृतमय हो गया है कि प्रायः हम लोग यह अनुभव ही नहीं करते कि हम कितना अधिक असत्य बोलते हैं। यह अनुभव तो तब मिलता है जब मनुष्य सचमुच झूठ से घबराने लगता है और सत्य ही बोलने के लिए सदा सचिन्त रहने लगता है। उस समय मुख से निकली अपनी एक-एक वाणी पर पूरा-पूरा निरीक्षण और विवेचन करने पर उसे पता लगता है कि वह सूक्ष्म रूप में कितने अधिक असत्य बोलता है। सच तो यह है कि हममें से जो लोग अपने को सत्य बोलनेवाला समझते हैं वे भी असल में बहुत असत्य बोलते हैं। जो पूरा सत्यवादी होगा, पतंजलि, व्यास आदि ऋषि-मुनियों के कथनानुसार, उसकी वाणी में तो ऐसा तेज आ जाएगा कि वह जो कुछ कहेगा, वह सच्चा हो जाएगा। वह क्रिया और फल से समन्वित हो जाएगा।
हे सहस्रवीर्य!
इस असत्य से तुम ही हमें बचाओ। हमने आत्मनिरीक्षण करते हुए सदा देखा है कि हम सदैव तुच्छ भय, लोभ आदि के कारण ही सदैव अपनी कमज़ोरी, निर्बलता, वीर्यहीनता के कारण ही असत्य बोलते हैं, अतः हे अपरिमित वीर्यवाले! तुम हमें ऐसे वीर्य और बल से भर दो कि हम सदा निधड़क होकर सत्य ही बोलें। इस तरह हे सहस्रवीर्य! तुम हमें सदा असत्य से छुड़ाते रहो, असत्य के पाप से हमें सब ओर से मुक्त करते रहो।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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