ओ३म ।
🌹 वैदिक विनय–57 🌹
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👉ऋग्वेद:-8/45/23; साम वेद;उ. ½/6/2; ऋषि: त्रिशोक: कण्व:। देवता इंद्र:। छंद गायत्री।
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👉मा त्वा मूरा अविष्यवो मोपहस्वान आ दभन् । माकी ब्रह्मद्विषो वन: ।।
👉हिंदी अर्थ,“ (हे मेरे आत्मन! हे मेरे मन!) तुझको मूढ़ अपनी पालना चाहने वाले स्वार्थ-पीड़ित लोग मत नस्ट करें; मत दबा दे और उपहास करने वाले, ठठा उड़ाने वाले लोग भी मत दे। तू ज्ञान व् परमेस्वर से प्रीति न रखने वाले मनुष्यों का मत सेवन कर; मत संगति कर।
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👉सरल रहस्य विनय:- राजिंदर वैदिक । 👏
👉ऋषि मन्त्र द्रष्टा है। उपासना योग यज्ञ का सिद्ध अभ्यासी है। इस उपासना योग यज्ञ अभ्यास में जो बाधा आती है; उनका वर्णन किया गया है। सबसे पहले कहा गया है की जब तुम इस उपासना योग यज्ञ (ब्रह्मयज्ञ) अभ्यास को करने लगोगे; तो जिन लोगों को ;तुमहारे परिवार वालों को ; पत्नी-पुत्र आदि कोई भी जो तुमसे स्वार्थ रखता है; वह अपने पालन करने की दुहाई देगा। तुम्हरा ये कर्तव्य-कर्म बनता है; ये तो तुम्हें करना पड़ेगा। और वे मुड़, अज्ञानी लोग; अपनी पालना चाहने वाले स्वार्थ पीड़ित लोग तुम्हारी भक्ति को नष्ट करेंगे; तुम्हें ज्यादा से ज्यादा संसार में लगाये रखेगे। और जब तुम्हरा मन ज्यादा समय तक सांसारिक कर्मो में रमेगा; तो वह उपासना योग यज्ञ अभ्यास में चंचल रहेगा; उसमें टिकेगा नही; एकाग्र नही होवेगा। उस समय भी संसार की बातें याद करेगा; प्रभु-चिंतन की जगह पर संसार चिंतन ही करेगा। इस प्रकार ऐसे स्वार्थी लोगों से बचो; उनसे दबओ मत। इनमें रहते हुए ही अपने ज़ुरूरी कर्तव्यों-कर्मो को करते हुए ही उपासना योग यज्ञ का अभ्यास जारी रखो।
आपको आप का उपहास करने वाले; ठठा उड़ाने वाले भी मिलेगे। वह कहेगें की तुम तो पागल हो; जो सुखों से मुँह मोड़ रहे हो; वह भी किसके लिए? परमात्मा के लिए?; अरे! वह तो है ही नही। यदि वह परमात्मा होता तो ये मनुष्य फिर कम उम्र में क्यों मरते है? ये दुःखी क्यों होते है? क्या वह इनको दुःख देकर मजा लेता है? पर है वो कहा? कहा उसका निवास है? हमें उस परमात्मा को कोई दिखलाओ तो सही; हम उससे पूछेगें की ये दुनियां क्यों और किस लिए रची है? अतः परमात्मा नही है; उसकी परवाह न करों? अगला जन्म किसने देखा है? यही जन्म है; इसलिए कुछ भी करों; चाहे कर्ज लो और संसार के पथार्थो को भोगों। अर्थार्त खाओ, पीओ, मौज करों। ऐसे अज्ञानियों से भी बच कर रहना । बल्कि परमेस्वर रूपी सत्य ज्ञान से प्रीति न रखने वाले इन मनुष्यों की संगति मत करना। इनसे दूर ही रहना और पुरे प्रभु भक्त की संगति करना। उसकी सेवा करना; उसके संग से ही तुझ पर प्रभु-भक्ति का रंग चढ़ने लगेगा। और तुम स्वयं अनुभूति करके जान जाओंगे की प्रभु कैसा है? और उसको जानने के दौरान और बाद में आप में कितना बदलाव आया है। आप पहले से कितना बदल गए है। आपके जीवन में अब कितनी शांति-आनंद आ गया है। आप स्वस्थ हो गए हो; आप जीवन को जान गए हो और भय मुक्त होकर अभय हो गए हो। अतः हे मेरे मन! उपरोक्त इन लोगों से बच कर रहना और प्रभु प्राप्ति वास्ते उपासना योग यज्ञ का अभ्यास करता जा; करता जा ।।
——–राजिंदर वैदिक । 👏
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