प्राणापाननिमेषोन्मेषजीवनमनोगतिइन्द्रियाँन्तरविकारा:। सुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नश्च आत्मनो लिंगानि। (वैशेषिक दर्शन) प्राण,अपान अर्थात श्वास लेना और छोड़ना पलक मींचना-खोलना,जीवन अर्थात प्राण का धारण करना,मन अर्थात मनन विचार,ज्ञान,गति अर्थात यथेष्ट गमन करना,जाना,इन्द्रिय अर्थात इन्द्रियों को विषयों मे चलाना उनसे विषयो का ग्रहण करना,अन्तरविकार-भूख,प्यास,ज्वर,पीड़ा आदि विकारों का होना,सुख,दुख,इच्छा,द्वेष,प्रयत्न ये सब आत्मा के लक्षण अर्थात गुण और कर्म है। जब तक आत्मा देह मे होता है तभी तक ये गुण प्रकाशित रहते हैं। जब शरीर छोड़कर चला जाता है,तब ये गुण शरीर मे नही रहते।
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