यजुर्वेद ८-४९ (8-49)
क॑कु॒भ रू॒पँ वृ॑ष॒भस्य॑ रोचते बृ॒हच्छु॒क्रः शु॒क्रस्य॑ पुरो॒गाः सोमः॒ सोम॑स्य पुरो॒गाः । यत्ते॑ सोमा॒दाभ्यन्नाम॒ जागृ॑वि॒ तस्मै॑ त्वा गृह्णामि॒ तस्मै॑ ते सोम॒ सोमा॑य॒ स्वाहा॑ ॥
भावार्थ:- सभाजन और प्रजाजनों को चाहिये कि जिसकी पुण्य प्रशंसा, सुन्दररूप, विघया, न्याय, विनय, शूरता, तेज, अपक्षपात, मित्रता, सब कामों में उत्साह, आरोग्य, बल, पराक्रम, धीरज, जितेन्द्रियता, वेदादि शास्त्रों में श्रद्धा और प्रजापालन में प्रीति हो, उसी को सभा का अधिपति राजा मानें।।
Pandit Lekhram Vedic Mission
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