आज का सुविचार (20 अक्टूबर 2015, मंगलवार, कार्तिक शुक्ल ७)
मानव हेतु सुउत्पत्ति, सुधारण, सुपालन, सुचालन, सुसंचालन जीवन-मन्त्र संस्कार योजना है। नौकरी का जीवन-समृद्धिकरण हेतु भी संस्कार-योजनाएं हैं। इन संस्कार योजनाओं का नाम है- प्रशिक्षण, संगोष्ठियां, कार्यशालाएं तथा सेमिनार। इन्हें संस्कारवत नियमबद्ध करना एक महान उद्योग सेवा होगी। इनके स्वरूप में रचनात्मक परिवर्तन करना आवश्यक है। वर्तमान में ये पदाधारित हैं। इन्हें पांडित्याधारित करना होगा। राष्ट्रीय सेमिनार नेता आधारित होते हैं। अयोग्य सेमिनार अक्षमताकारक होते हैं। धन-समय-योग्यता की बरबादी होते हैं। इनमें रखे भव्य लंच, डिनर, हाई टी तथा भेटें इनके सार स्वरूप तथा ज्ञान-स्वरूप को खा डालते हैं। मोटी भाषा में कहा जाए तो ये सेमिनार चालू लोगों के आमोद-प्रमोद के साधन हो गए हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में सारे विश्व-विद्वानों के हेवि लंच के बाद सोते ऊँघते चित्र मेरे पास हैं। `सवितुर्वरेण्यम्’ स्वरूप से इन्हें निखारना होगा। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)
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