Rajinder Kumar Vedic
“वैदिक ज्ञान” (भाग-6 )
लेखक : राजिंदर वैदिक
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गीता अ.10 /मन्त्र:20 :वह परमात्मा सब भूतों के ह्रदय में स्थित सबका आत्मा है तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि, मध्य,और अंत भी वही है. गीता.अ.15 /12 ,13 ,“ सूर्य में स्थित जो तेज सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता है, तथा जो तेज चन्द्रमा में है और जो अग्नि में है, उसको तुम परमात्मा का तेज ही जानो,(१२) और परमात्मा ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपने शक्ति से सब भूतों को धारण करता है और रस स्वरूप अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण अौषधियो , वनस्पतियो को पुस्ट करता है.(१३) परमात्मा ही सब प्राणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से सयुक्त वैश्वानर अग्निरूप होकर चार प्रकार के अन्न को पचाता है.(१४) परमात्मा ही सब प्राणियों के ह्रदय में अंतर्यामी रूप से स्थित है, तथा परमात्मा से ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है. और सब वेदों द्वारा परमात्मा ही जानने योग्य है तथा वेदांत का करता और वेदों को जानने वाला भी परमात्मा ही है.(15 )
विवेकचूड़ामणि:4 /१२९,130 ,"जो स्वयं सबको देक्ता है, किन्तु जिसको कोई नही देख सकता है, जो बुद्धि आदि को प्रकाशित करता है, किन्तु जिसे बुद्धि आदि प्रकाशित नही कर सकते है.: जिसने सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त कर रखा है, किन्तु जिसे कोई व्याप्त नही कर सकता है, तथा जिसके भासने पर यह आभास रूप सारा जगत भाषित हो रहा है. 4 /131 :,” जिसकी सनिधि मात्र से देह, इन्द्रिय, मन और बुद्धि प्रेरित हुए से अपने-अपने विषयो में बरतते है.. 4 /136 :,“वह न जन्मता है, न मरता है, न बढ़ता है, न घटता है और न विकार को प्राप्त होता है. वह नित्य है और इस शरीर के लीन होने पर भी घड़े के टूटने पर घड़े के आकाश के समान लीन नही होता है. 4 /137 ,” प्रकृति और उसके विकारो से भिन्न है, शुद्ध ज्ञानस्वरूप है, वह निर्विशेष परमात्मा सत-अस्त सबको प्रकाशित करता हुआ जागृत आदि अवस्थावो में अहम भाव से स्फुरित होता हुआ बुद्धि के साक्षी रूप से साक्षात विराजमान. है. 6 /239 ,“ इसलिए परब्रह्म सत है, अद्वितीय है, शुद्ध विज्ञानघन है, निर्मल है, शांत है, आदि है, अन्नरहित है, अक्रिय है और सदैव आनंदरस स्वरूप है. —-क्रमश:
—–राजिंदर वैदिक
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