Tuesday, October 20, 2015

Rajinder Kumar Vedic “जीवन को सबब मिल जाये” ——–राजिंदर वैदिक मानव...

Rajinder Kumar Vedic


“जीवन को सबब मिल जाये”
——–राजिंदर वैदिक

मानव सर्वोत्तम कृति है पर्भु की,
सोचने, निर्णय और संभालने की,
पास है सारी ताकत उसकी,
सारी सुख-सुविधाये, पा लेने पर भी,
रह जाता है, खाली है खाली /

दिव्य आत्मा है तू, ऊपर धाम से आई है,
अपने को जानने के, कर्म करने यहाँ आई है.
इसके उलटे मार्ग पर जाने से ही, अनेक समस्याय आई है,
सत्य मार्ग पकड़ लेने पर ही, सब रहस्य खुल जाई है.

शरीर है, इस आत्मा का छोले,
संसार है, परमात्मा का चोला.
आत्मा इस शरीर से काम ले रहा,
परमात्मा इस संसार से काम है ले रहा,
हम केवल इस शरीर-संसार को देख रहे,
उनके पीछे छिपे चेतन को नही देख रहे,

बिना अभ्यास- वैराग्य के,
कोई उसको देख न पाये,
नंगी आँख , साधारण मन बुद्धि से,
कोई उसको देख न पाये.
तीसरी आँख के दिव्य चक्षु,
ऋतम्भरा -प्रज्ञा के बिना,
कोई उसके ठोर-ठिकाने, देख न पाये,
उसके ठोर-ठिकाने देखते ही,
सारे प्रश्न सुलझ जाये.

अपने इस परमात्मा को ही, गुरु बना ले,
जो सब गुरुओ का भी, परमगुरु कहलाये.
तेरा गुरु तेरे अंदर ही समाये,
तीसरे नेत्र की एकाग्रता से,
उसका पिच्छा कर ले,
फिर गुरु आगे-आगे, हम पीछे -पीछे चाले,
फिर चाहे, कितना लाड़ लड़ा ले,
कितना ही चहके, और आनंद मना ले,
मंजिल हमारी, हमे मिल जाये.

बाहरी शरीर-संसार में खोकर,
इनपर ही लिख रहे है.
जिनके कारण सौंदर्य इनका,
उसको पीछे छोड़ रहे है,
इस सौंदर्य को जानना ही,
सत्य उद्देश्य है हमारा,
बिना प्रेम-तड़प के,
मिलता नही है उसका द्वारा.

——राजिंदर वैदिक


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