८ कार्तिक 24 अक्टूबर 2015
😶 “ निष्काम कर्मयोग की महती महिमा ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् कुर्वत्रेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समा:। 🔥🔥
🍃🍂 एवं त्वयि नान्यथेतोअस्ति न कर्म लिप्यते नरे ।। 🍂🍃
यजु० ४० ।२ ।
ऋषि:- दीर्घतमा: ।। देवता- आत्मा: ।। छन्द:- भुरिगनुष्टुप् ।।
शब्दार्थ- मनुष्य इस संसार में कर्मों को करता हुआ ही सौ वर्ष तक जीता रहना चाहे। इस तरह, पर्वोक्त प्रकार से त्यागपूर्व कर्म करने से तुझे नर में कर्म लिप्त नहीं होगा। इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है।
विनय:- मनुष्य को चाहिए कि वह कर्म करता हुआ ही जीना चाहे। यदि वह कर्म नहीं करता है तो उसे जीवित रहने का अधिकार नहीं है। यह जीवन कर्म करने के लिए ही दिया गया है।
हे मनुष्य!
क्या तू डरता है कि कर्म करने से तू कर्म में लिप्त हो जाएगा? नहीं, यदि तू पूर्वोक्त प्रकार से त्यागपूर्वक जगत् को भोगेगा तो तेरे ऐसे कर्म कभी तुझे बन्धनकारक नहीं होंगे।ऐसे निष्काम कर्मों का कभी तुझ ‘नर’ में लेप नहीं होगा। सचमुच ऐसे निष्काम कर्म करनेवाले ही संसार में असली नर होते हैं।अतः हे नर! तू अनासक्त होकर त्यागपूर्वक कर्मों को कर। यही कर्मलेप से बचने का उपाय है। क्या तू समझता है कि कर्म न करने से तू कर्मलेप से बच जाएगा? यदि कर्म करने से बचने के लिए तू आत्मघात भी कर डालेगा, तो भी तुझे छुटकारा नहीं मिलेगा। तुझे दूसरा जन्म लेना पड़ेगा और तुझे इस आत्मघात का पाप भी लगेगा। तू देख कि जिस समय कर्म करना आवश्यक हो उस समय कर्म न करने से अकर्म का पाप भी लगता है, अतः याद रख कि कर्म त्यागने से तो तुझे कभी निर्लेपता नहीं मिलेगी। इसका साधन तो एक ही है कि कर्म किया जाए, किन्तु निर्लेप होकर किया जाए। अतः हे मनुष्य! तू उठ और इस अकर्म की तामसिक अवस्था को त्यागकर उत्साहपूर्वक निर्लेप कर्मों को किया कर। ऐसे कर्मों को तू अपने सम्पूर्ण सौ वर्ष तक करता जा, अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक करता जा।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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