जब सब की आत्मा में परमात्मा बसा है ।
फिर क्यों ऐ भोले मानव मोह शोक में फंसा है ।।
यहां कुछ नहीं है मेरा मेरा है मेरी मृत्यु ।
तप त्याग यज्ञ त्रित ही ज्ञानी के मन बसा है ।।
इक डोर से बंधे हम सब है प्रभू में स्थित ।
पर राग द्वेष माया के सर्प ने डसा है ।।
आत्मा की शक्ति जानो वह ब्रह्म को पहचानो ।
सब उस माला के मनके जगत् सूत्र में कसा है ।।
from Tumblr http://ift.tt/1Lrr2rz
via IFTTT
No comments:
Post a Comment