Monday, October 19, 2015

प्रश्न ★ क्या मूर्ति-पूजा का विधान भगवान् मनु , भगवान् श्रीराम और भगवान् श्रीकृष्ण आदि महापुरुषों के...

प्रश्न ★ क्या मूर्ति-पूजा का विधान भगवान् मनु , भगवान् श्रीराम और भगवान् श्रीकृष्ण आदि महापुरुषों के काल में प्रचलित था या नहीं ?
*********************************
आइये जानने का प्रयास करते है *—-
★उत्तर★- नही ! मूर्ति पूजा का प्रचलन ना ही मनु , श्रीराम के काल में था और ना ही महाभारत या श्री कृष्ण के समय था क्योकि मूर्ति-पूजा का हमारे सत्य सनातन वैदिक धर्म में कही विधान ही नही है और ना ही वेद में ही इसका कोई विधान है ।
आइये इसे समझे *—–
मनु महराज को राम से पूर्व या पहले का माना जाता है । मनु महराज ने अपने स्वय निर्मित ग्रन्थ “मनुस्मृति” में कही भी मूर्ति आदि जड़ पूजा का विधान नही किया और अपने ग्रन्थ को मूलतः वेद आधारित कहा है या उसका आधार वेद है ।
★इससे ये तो सिद्ध होता है की मनु के काल में मूर्ति पूजा का कोई विधान था ही नही !
★भगवान श्री राम के जीवन काल में निर्मित “रामायण” जिसके रचयिता बाल्मीकि जी है उन्होंने भी अपने रामायण में मूर्ति आदि जड़ पूजा का कही भी वर्णन नही किया है । भगवान राम के द्वारा परमात्मा की यज्ञ या नित्य उपासना का वर्णन तो किया है लेकिन कही भी मूर्ति-पूजा को नही दर्शाया है ।
★इससे ये तो सिद्ध होता है की भगवान राम के समय मूर्ति-पूजा का कोई विधान नही था । जिसको विश्वास ना हो बाल्मीकि रामायण को पढ़े ।
★श्रीकृष्ण ,महाभारत काल में भी कही मूर्ति-पूजा का कोई स्थान नही था या कह ले की मूर्ति की कोई व्यवस्था थी ही नही ! इस काल में यज्ञ आदि बहुत बड़े स्तर पर होता था । महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी जो वेद के बहुत बड़े विद्वान् पंडित थे उन्होंने भी अपने ग्रन्थ महाभारत में पांड्वो और कौरवो द्वारा यज्ञ करने का तो वर्णन तो किया है लेकिन जड़ आदि मूर्ति-पूजा का कही भी वर्णन नही किया है । कहने का तत्पर्य यह है की त्रेता,सतयुग,द्वापर में मूर्ति-पूजा की कोई व्यवस्था नही थी और ना ही इसे धर्म संगत माना जाता था क्योकि उस काल में केवल वैदिक धर्म और वेद के ही अनुसार कार्य होता था ।
★अब समझने का प्रयास करते है की मूर्ति-पूजा कहा से प्रारम्भ हुआ था ।
★आर्यावर्त देश को महाभारत के बाद बहुत बड़ी हानि हुई उस युद्ध में धर्म की स्थापना के लिए बड़े-बड़े विद्वान् ,ऋषि मुनि आदि उस युद्ध मे मारे गए जिससे ईश्वरी ज्ञान वेद बहुधा लोप हो गया या कह ले की ईश्वरी ज्ञान वेद का पठन-पाठन बहुत कम हो गया था ।
★जिससे लोगो में अज्ञानता बहुत अधिक बढ़ गयी और कुछ स्वार्थी धूर्त पंडो ने अठारह काल्पनिक पुराणों की रचनाकर के लोगो को ठगना प्रारम्भ कर किया और मनु महाराज के वर्ण व्यवस्था जो की कर्म के अनुसार था उसको जन्म आधारित कर दिया और लोगो को जाति व्यवस्था से जोड़ दिया । जब शुद्र जाति के लोगो को अधिक कष्ट दिया जाने लगा तो शुद्र जाति के लोग पंडो के द्वारा कष्ट से क्षुब्द होकर आपना एक नया सम्प्रदाय स्थापित कर लिया ।
★मूर्ति-पूजा का प्रारम्भ जैनियों ने किया था जब पंडो के जटिल कर्मकांड पाखंड से क्षुब्ध होकर लोगो ने जैन धर्म को अपनने लगे तो पंडो के रोजी रोटी पर संकट मडराने लगा तब पंडो ने अपनी जीविका जारी रखने के लिए अठारह पुराण में मूर्ति-पूजा की रचना की और अब लोगो को मूर्ति-पूजा के माध्यम से मुक्ति का सरल रास्ता दिखलाना शुरू कर दिया ।
★ तुलसीदास का जन्म 14वीं शताब्दी में हुआ था और उस समय मूर्ति-पूजा का प्रारम्भ हो चूका था जिससे प्रभावित होकर तुलसीदास ने आपने द्वारा रचित रामचरित्रमानस में मूर्ति पूजा को दर्शाया है जो की उनकी अज्ञानता है ।
★ इसी प्रकार आज हमारे सभी ग्रन्थ जो टीवी आदि पर प्रस्तुत होते है नाटक के रूप में उसमे भी मूर्ति-पूजा करते दिखाया जाता है जिससे आज वर्तमान समय के लोग और भी भ्रमित हो जाते है । कहने का तत्पर्य यह है की महाभारत के बाद वेद के ज्ञान का कुछ समय के लिए अभाव होना और उसके अभाव के कारण समाज में अज्ञानता विकृति आदि आने के कारण समाज का टूटना आदि पाखंड मूर्ति-पूजा का प्रपंच बढ़ना आदि मुख्य कारण है ।
★ धीरे-धीरे हमारे सभी ग्रंथो में मूर्ति-पूजा का मिलावट कर दिया गया ।
★ इससे ये तो सिद्ध होता है की हमारे महापुरुष मूर्ति आदि जड़ की पूजा नही करते थे वे तो केवल वेद आधारित निराकार ईश्वर की उपासना करते थे । जिसका प्रमाण भी है और उसकी प्रमाणिकता शास्त्र व तर्क संगत भी है ।
*********************************


from Tumblr http://ift.tt/1W1gxOq
via IFTTT

No comments:

Post a Comment