शंका ???
यदि किसी जीव के शरीर मे जूंए पड जाये तो कया एक जीव को बचाने हेतू अनेक जीवो को मारना पाप नही है ?अधर्म नही है ?कयोकि जूंए आदि भी तो परमात्मा ने पैदा करी है l
ऐसे ही एक जीव के लिए अनेको जुंए मार देना कितना उचित है ?????
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उत्तर:- जूएं स्वेदज हैं, इनका जन्म अशुद्धि से होता है, अपवित्रता सबसे बड़ा अधर्म है। शरीर को शुद्ध नहीं रखने पर मन भी अशुद्ध होकर पाप में प्रवृत्त होता है।
मनुस्मृति के अनुसार, अनजाने में चींटी आदि क्षुद्र जीव की हत्या की पाप की निवृत्ति के लिये न्यूनतम 6 प्राणायाम का विधान है। आप साँस लेते हैं तो भी अनेक जीवों की मृत्यु हो जाती है। तो क्या साँस लेना भी छोड़ देना चाहिये ???
एक होम्योपैथिक औषधि खिलाने से जूंए मर जाएंगी। न मारने से अधिक पाप हो जाएगा। कुत्ता बीमार और उसके संपर्क में आने पर घर के लोग भी अस्वस्थ हो सकते हैं।
फिर जूं को मारना आत्मरक्षा के अंदर आएगा और यह हिंसा नहीं कहलायेगा। हम अपने मजे के लिए जूंए नहीं मार रहे। जूंए हमारा खून पीकर हमारे शरीर को नुक्सान पहुचा रही है। अपने शरीर की रक्षा हमारा कर्तव्य हैl
धर्म राष्ट्र व स्व रक्षा हेतु यदि लाखों दुष्ट जीवों के शरीर की हत्या भी करनी पडे तो वह अधर्म नहीं है…..
इसमें शास्त्र ये कहता है कि जिसका अधिक महत्व है उसको बचाना चाहिए
ठीक है यहां कोई हिंसा कह सकता है
किन्तु मनुष्य शरीर को नष्ट करना क्षीण करना और बड़ी हिंसा है
आत्मा के लिए मनुष्य शरीर अधिक महत्वपूर्ण है इसलिए इसकी रक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है
अन्य शरीरों में यह पुण्य रूप कर्म नहीं कर सकता इसके लिए तो इसी में सम्भव है
वैषेशिक में कहा है हीने परत्याग: अर्थात् हीन को दूसरे के लिए त्याग कर देना चाहिए.
प्रधानमन्त्री और अंगरक्षक में बलिदान किसको देना चाहिए कौन अधिक महत्वपूर्ण है वैसे ही कुत्ता और जूंए मे कौन अधिक महत्वपूर्ण है यह देख विचार कर सकते है
जूं हमारा नुकसान कर रही है, जो नुकसान करता है. उसे मारने में पाप नहीं लगता । ऋषि ने कहा है कि यथायोग्य व्यवहार करें ।
यदि कोई जूंए,कॉकरोच आदि जीवो को पाप पुण्य के कारण मारना नही चाहता शरीर अथवा स्थान को शुद्ध नही करना चाहता,अपने शरीर अथवा स्थान को बचाना नही चाहता तो उसे तो मूर्ख ही कहना चाहिए और जूंए आदि उसी के शरीर पर छोड देनी चाहिए तो उसे आश्रय मिलेगा।
=====विद्वानो के कथन
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