।।ओ३म्।।
~आर्य स्वाभिमान~
बड़ा अंतर देखे-
‘आर्य’ सत्य सनातन वैदिक धर्म, ईश्वरीय ज्ञान, आज्ञा वेदों को मानते है जिसका ज्ञान सार्वभौमिक है, पूरी मानव जाति के लिए है ना कि सीमित भूभाग और विशेषाधिकार मनुष्यो के लिए और बाकी (हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, जैन..) मानव कृत झूठे और कपोल कल्पित ग्रंथो को जिनमे असंभव, मिथ्या और अवैज्ञानिक अज्ञान जिनमे मानव विरोधी और परस्पर विरोधी बातों से भरा पड़ा है!
आर्य (मनु स्मृति के अनुसार) धर्म के 10 लक्षणों का पालन करता है- मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।। (मनुस्मृति ६.९२)
[धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, शौच (स्वच्छता), इन्द्रियों को वश मे रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।]
याज्ञवल्क्य ने भी धर्म के नौ (9) लक्षण गिनाए हैं:
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्।।
[अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम), दया एवं शान्ति]
…अब क्या आर्यो के अलावा इन्हें और कोई मानता है?
और मानता और पालन करता है तो वह बेशक आर्य है।
मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष आदि भिन्न-भिन्न जातियाँ है। जिन जीवों की उत्पत्ति एक समान होती है वे एक ही जाति के होते है। अत: मनुष्य एक जाति है। जाति रूप से तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं होता है परंतु गुण, कर्म, स्वभाव व व्यवहार आदि में भिन्नता होती है।
कर्म के भेद से मनुष्य जाति (mankind) में दो भेद होते है
१ आर्य
२ दस्यु।
दो सगे भाई आर्य और दस्यु हो सकते है।
वेद (ved) में कहा है “विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:” अर्थात आर्य और दस्युओं का विशेष ज्ञान रखना चाहिए।
निरुक्त आर्य को सच्चा ईश्वर पुत्र से संबोधित करता है। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है और सारे संसार को आर्य बनाने का संदेश दिया गया है।
वेद कहता है “कृण्वन्तो विश्वमार्यम”अर्थात सारे संसार को आर्य बनावों।
वेद में आर्य (श्रेष्ठ मनुष्यों) को ही पदार्थ दिये जाने का विधान किया गया है – “अहं भूमिमददामार्याय” अर्थात मैं आर्यों को यह भूमि देता हूँ।
इसका अर्थ यह हुआ कि आर्य परिश्रम से अपना कल्याण करता हुआ, परोपकार(philanthropy) वृत्ति से दूसरों को भी लाभ पहुंचवेगा जबकि दस्यु दुष्ट स्वार्थी सब प्राणियों को हानि ही पहुंचाएगा। अत: दुष्ट को अपनी भूमि आदि संपत्ति नहीं दिये जाने चाहिए चाहे वह अपना पुत्र ही क्यों न हो।
आर्य कौन है ? who is arya
बाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्री रामचन्द्र (shri ram) जी को स्थान-स्थान पर ‘आर्य’ व“आर्यपुत्र” कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को व श्रीकृष्ण जी को “आर्यपुत्र” तथा गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने आर्य शब्द की व्याख्या (meaning of arya) में कहा है कि “जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य-विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त (aryavart) देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते है।”
आर्य संज्ञा वाले व्यक्ति किसी एक स्थान अथवा समाज में नहीं होते, अपितु वे सर्वत्र पाये जाते है। सच्चा आर्य वह है जिसके व्यवहार से सभी(प्राणिमात्र) को सुख मिलता है, जो इस पृथ्वी पर सत्य, अहिंसा, परोपकार, पवित्रता आदि व्रतों का विशेष रूप से धारण करता है।
जय आर्य जय आर्यवर्त
~आर्य नरेंद्र कौशिक~
~नरवाना (आर्यवर्त)~
।।ओ३म्।।
…..आर्य स्वाभिमान…..
from Tumblr http://ift.tt/1S1Isxc
via IFTTT
No comments:
Post a Comment