शंका - नवरात्रों में उपवास और निराहार रहने का सत्य अर्थ क्या हैं?
समाधान- प्राय: उपवास से सब यही निष्कर्ष निकालते हैं की भोजन ग्रहण न करना अथवा भुखा रहना। मगर क्या उपवास का अर्थ वाकई में निराहार रहना हैं? शतपथ ब्राह्मण १/१/१/७ के अनुसार “उपवास” का अर्थ गृहस्थ के लिए प्रयोग हुआ हैं जिसमें गृहस्थ के यज्ञ विशेष अथवा व्रत विशेष करने पर विद्वान लोग उनके घरों में आते हैं अर्थात उनके समीप (उप) रुकते (वास) हैं। इसलिए विद्वानों का सत्संग करना उपवास कहलाता था। उपवास के समय भूखा रहना अर्थात निराहार रहने का तात्पर्य शतपथ ब्राह्मण १/१/१/८ के अनुसार विद्वान के घर पर आने पर उनके भोजन ग्रहण करने के पश्चात ही गृहस्थी को भोजन ग्रहण करना चाहिए अर्थात तब तक निराहार रहना चाहिए। उपवास और निराहार का मूल उद्देश्य विद्वानों का सत्संग, उनसे उपदेशों का श्रवण एवं उनकी सेवा शुश्रुता था। कालांतर में मूल उद्देश्य गौण हो गया और सत्संग, स्वाध्याय का स्थान भूखे रहने ने ले लिया हैं। केवल भूखे रहने से कुछ भी प्राप्ति नहीं होती। वेदों के स्वाध्याय एवं वैदिक विद्वानों के सत्संग से ही ज्ञान की प्राप्ति होती हैं। आशा हैं पाठक उपवास के सत्य अर्थ को समझ कर उसके अनुसार विद्वानों का सान्निध्य ग्रहण कर अपने जीवन में ज्ञान का प्रकाश करेंगे।
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