३० जयेष्ठ 13 जून 15
😶 “ ब्रह्मचर्य महिमा ” 🌞
🔥🔥ओ३म् इयं समित् पृथ्वी द्यौर्द्वितीयोतान्तरिक्षं समिधा पृणाति ।🔥🔥
🍃🍂 ब्रह्मचारी समिधा मेखलया श्रमेण लोकाँस्तपसा पिपर्त्ति ।। 🍂🍃
अथर्व० ११ । ५ । ४
शब्दार्थ :- यह पहली समिधा पार्थिव-जगत् की, दूसरी समिधा द्युलोक की,आत्मिक जगत् की, और वह अपनी तीसरी समिधा द्वारा मध्य के मनोमय अंतिरक्ष लोक को पूर्ण करता है । इस प्रकार ब्रह्मचारी समिधा से,त्रिविध दीप्ती से मेखला से,कटीबद्वता से श्रम से और तप से तीनों लोकों को,संसार के सब लोगों को पालित,पोषित और पूरित करता हैं ।
विनय :- यह संसार ब्रह्मचर्य से ही पालित,पोषित, और पूरित हो रहा है । इस जगत् के आधार में यदि ब्रह्मचरी का परमवीर्य न होता,तो यह जगत् कब का खत्म और खाली और छूछा हो चुका होता, अपने शारीरिक वीर्य की,ब्रह्मतेज की और आत्मिक वीर्य ( आत्म-तेज ) की रक्षा करनेवाले सयंमी ब्रह्मचारी लोग ही है जो इस त्रिलोकी को निरन्तर जीवन-तेज से पूरित कर रहे है । ब्रह्मचारी अपने शरीर को, अपने मन को,अपनी आत्मा( विज्ञानमय ) को तीन समिधाएँ बनाकर बृहद् अग्रि ( आचार्याग्रि या परमात्माग्रि ) में रखता है, उसके अर्पण कर देता है । इसका फल यह होता है कि उसकी ये तीनों समिधाएँ प्रदीप्त हो जाती है-उसके शरीर में वीर्य का तेज आ जाता है,उसका मन ब्रह्म-तेज से समिद्ध हो जाता है । इस प्रकार से संसार का प्रत्येक सच्चा ब्रह्मचारी अपने संचित,रक्षित,त्रिविध तेज (समिधा ) द्वारा इन तीनों लोकों को पालित कर रहा है । खूब श्रम करना,शरीर और मन से खूब काम लेकर इन्हें थका देने पर ही विश्राम करना-यह ब्रह्मचारी का धर्म है ; आराम पसन्द,कामचोर मनुष्य के भाग्य में ब्रह्मचारी का सुख नहीं है । तप करना सब द्वंदों को सहना,गर्मी सर्दी, भूख प्यास,सुख दुःख आदि को प्रसत्रतापूर्वक सहना-यह ब्रह्मचारी का तीसरा परमावश्यक व्रत है । इन्हीं में ब्रह्मचर्य की अपार महिमा का रहस्य है ।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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