Sunday, June 14, 2015

।।ओ३म्।। अवतारवाद का खंडन-मंडन:- धर्म से सम्बन्धित सभी विषय हमेशा रहते हैं,कभी न कम होते और न ही...

।।ओ३म्।।

अवतारवाद का खंडन-मंडन:-

धर्म से सम्बन्धित सभी विषय हमेशा रहते हैं,कभी न कम होते और न ही ज्यादा।धर्म के समस्त विषय स्वयंसिद्ध होते हैं,जो बाते अपने आप में सिद्ध नहीं होती वो धर्म की नहीं होती।

अवतार होता,तो वो भी कभी न कभी,कहीं न कहीं,किसी न किसी को जरूर दिखाई देता।क्या कभी किसी से सुनने में आता है कि फलां व्यक्ति ने कोई अवतार देखा है।अवतार का अर्थ सिर्फ इतना है कि जब धर्म व अधर्म के बीच तर्क-वितर्क,युद्ध होता है,तो उस समय जो व्यक्ति धार्मिक लोगों का नेतृत्व करता है,उन्हें अधर्मियों से जीतने के गुर बताता है,वो ही उस समय का अवतार समझिये।
अवतार के बारे में जो धारणा पोंगी पंडतों ने आमजन में बना रखी है,उसके पीछे मूर्ति को पुजवाने का राज छिपा है।भोले-भाले लोग मूर्ति को अवतार समझकर और उससे डरकर या सम्मान देने के उद्देश्य से उस पर चढावा चढाते हैं।जिससे पोंगे पंडत अपना पेट भरते हैं।अगर वो उनको हमारे जैसा ही मनुष्य बतलावे तो क्यूं कोई उन पर चढावा चढायेगा।फिर तो सब उनका अनुसरण करके उनके मार्ग पर चलने की कोशिश करेंगे।क्योंकि उनके मन में ये बात घर कर जायेगी कि भई ये तो हम मनुष्यों के बीच का ही कोई गुणवान मनुष्य था।

इस प्रकार जैसा झूठ-मूठ का अवतार पोंगे पंडितों ने बनाया है,वो कभी किसी को आज तक दिखाई नहीं दिया।अगर पोंगे पंडितों के पास हो तो वो दिखायें,कभी दिखाते क्यों नहीं।
बहुत समय पहले जब धार्मिक नीतियाँ लागू थ,तो लोगों के अंदर धार्मिक भाव ज्यादा थे।फलस्वरूप अधर्म कम था।इसलिए जब कभी धार्मिक व अधर्मी लोगों के बीच कोई कहासुनी,लडाई-झगडा होता था,तो उस समय का सबसे महान व्यक्ति धार्मिक लोगों का नेतृत्व करके उन्हें विजय दिलाता था।उसी को आज के समय के पोंगे पंडत जिन्हे पोप भी कहा जाता है,अवतार बताते हैं।
लेकिन जब से लोकतांत्रिक काल शुरू हुआ है या यूं कह लीजिये कि जब से अधार्मिक नीतियाँ लागू हुई हैं,तब से क्यों किसी को अवतार नहीं कहा गया।बल्कि अवतार न कहकर महापुरुष कहा गया।क्योंकि वो राजनीतिकवश या स्वार्थवश अधर्मी लोगों द्वारा मार दिए गये।
क्या शंकराचार्य,दयानंद,गुरुतेगबहादुर,
सुभाषचंद्र बोस,भगत सिंह ने अपनी जान देकर भी लाखों-करोडों लोगों का जीवन धन्य नहीं किया।लेकिन वो अधर्मियों के हाथो मरे,अपनी मौत नहीं मरे,इसलिए पोपों के अनुसार ये अवतार नहीं हैं।अगर वो धार्मिक काल में पैदा होते,तो पोंगे पंडत इनको भी अवतार कहते।विडंबना देखिये कि आज के सेकुलर नेता राजनीतिवश इनमें से कईंयों को तो आतंकवादी भी कहते हैं।

क्या धार्मिक काल में ही अवतार पैदा होते हैं।अगर ऐसा है,तो परमात्मा तो बडा पक्षपाती हुआ।जब अधर्म बहुत ज्यादा है,तो तब तो अवतार का आना बहुत ही जरूरी है।
सच तो ये है कि अवतार तो अब भी हैं,लेकिन वोट बैंक की राजनीति उन्हें प्रोत्साहित न करके हतोत्साहित करती है।असल में दिव्य गुणों वाले,सुपरनेचुरल व्यक्ति को ही महापुरुष या अवतार कहा जाता है।ऐसे लोग अब भी हैं।

अगर पोपों वाला अवतार होता,तो जब देश सैकड़ों सालों तक गुलाम रहा,महिलाओं व बच्चों तक पर भीषण अत्याचार किये गये,तो क्यों न आया?आज के समय में जब सीरिया,इराक आदि जगहों पर लोगों के सिर काटकर उनसे फुटबाल खेली जा रही है,लोगों को मारकर उनका मांस तक खाया जा रहा है,तो कोई अवतार क्यों न आकर संहार करता उनका।क्या ये बात सही नहीं है कि जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं,परमात्मा भी उन्हीं की सहायता करता है।इसलिए अगर आज के समय में भी किसी ऐसे महापुरुष जिसे कुछ लोग अवतार भी कहते हैं,को साक्षात देखना है,तो सबसे पहले आपको धर्म का साथ देकर अधर्मियों के खिलाफ एकजुट होना पडेगा,उनके खिलाफ तलवार उठानी पडेगी।जब जो धार्मिक लोगों का नेतृत्व करेगा,तो समझना कि वही उस समय का महापुरुष है,अवतार है।
जो धर्म के लिए,सत्य के पक्ष के लिये हथियार उठाता है,वो पोंगे पंडितों द्वारा मनघडंत अवतारों को नहीं मानता।जो कायर होते हैं,भाग्य में ही विश्वास करते हैं,दूसरों के लिये तो क्या अपने हक के लिए भी हथियार नहीं उठा सकते,तथाकथित अवतार के चक्कर मे अधर्मियों के हाथों अपनी जान गंवा देते हैं।ये सोचते हुए कि परमात्मा का कोई अवतार ही आकर हमें बचायेगा।

पुन: धार्मिक विषय हमेशा रहते हैं,सत्य होने से सनातन होते हैं।न कम होते और न ही ज्यादा।हां,अधर्म घटता बढता रहता है।धर्म विषय के कम या ज्यादा होने का प्रचार करने का कार्य परमात्मा नहीं,बल्कि पोंगे पंडत जैसे धूर्त लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये करते हैं।
क्या सभी जीवों का परमात्मा एक नहीं है?क्या विभिन्न मत-मजहबों ने अनेक स्वैच्छिक परमात्मा नहीं बना लिए हैं?क्या ये असत्य को मानने-मनवाने वाली बातें नहीं हैं।
इससे सिद्ध है कि अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए,अपनी राजनीति को बढाने के लिये धर्म के विषयों को घटाया बताया जाता है।

इसी प्रकार पौंगे पंडितों वाला अवतार न था,न है और न ही पैदा होगा कभी।इसलिए अपनी रक्षा स्वयं करें।इकट्ठा होकर करें तो ज्यादा बेहतर है।


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