ओ३म् अर्चत प्रार्चत नर: प्रिय मेधासो अर्चत|
अर्चन्तु पुत्रका उत् पुरमिद् धृष्णवर्चत|| (साम ३६२ )
जैसे मम मित्रों पुत्रों को, कोई उपकारी उपदेश करे,
त्यों कामलिप्त को शुभ गुण का, प्रभु श्रुतियों से सन्देश करे |
पुत्र पौत्र प्रिय सखा सहेली, आओ आओ सब जन आओ|
प्यारे प्रभुवर का मधुर गान, एक साथ सब मिलकर गाओ||
यह गान न तम भड़किला हो,
हर शब्द सुखद चमकीला हो,
मन कमल कली हो खिली खिली
ऐसा यह गान सुरीला हो|
जिससे से मन कलमष धुल जाये, ऐसा स्वर संगीत सुनाओ|
प्यारे प्रभुवर का मधुर गान, एक साथ सब मिलकर गाओ||
हृदय उमड़ती सहज अर्चना,
मधुर अर्चना प्रखर अरचना,
श्रुति मेधा को प्यारी प्यारी
गतिदायक हो सुखद अर्चना|
मन गहराई बुद्धि उँचाई, हृदय बुद्धि मे संगति लाओ|
प्यारे प्रभुवर का मधुर गान, एक साथ सब मिलकर गाओ||
मातृ अर्चना पितु अर्चना,
गुरु अर्चना अतिथि अर्चना,
माज वासना हरे न्यूनता
वरे पूर्णता ईश अर्चना |
हर रचना हो युक्त अर्चना, अर्चना गान ऐसा गाओ|
प्यारे प्रभुवर का मधुर गान्, एक साथ सब मिलकर गाओ||
******************************************
राजेन्द्र आर्य
from Tumblr http://ift.tt/1LubbJy
via IFTTT
No comments:
Post a Comment