“ यो भूतं च भव्यं च सर्वं यश्चाधितिष्ठति । स्व र्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम: ”
भाइयों महर्षि वेदव्यास जी ने कहा है - न ही मानुषत् श्रेष्ठतरंहि किचित् ( पृथ्वी पर मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ नहीँ )
आख़िर क्यो श्रेष्ठ है ?
क्योकि इसी मे धर्म विशेष है । मानव और पशु मे चार समानता है आहार , निद्रा ,भय , और मैथुन ।
एक पशु बड़ा होकर अपनी जन्मदात्री से ही कुकृत्य कर सकता है पर मानव चाहे कितना बड़ा होजाये वो अपनी माँ को माँ ही मानेगा यही है धर्म ।
जरा विचारिये इतना सुन्दर शरीर देने वाले इतना सुन्दर धर्म देने वाले परमपिता परमेश्वर के धन्यवाद हेतु आपके पास समय है ? उसकी उपासना हेतु आपके पास समय है ?
कुछ कुतर्क करते है कि विज्ञान के आगे क्या है ईश्वर ! तो हम बता दे उनको कोई माई का लाल नहीँ जो रोटी और सब्ज़ी से एक बूँद खून भी बना दे पर ये संभव हुआ ईश्वर की बनायी मशीन से जरा विचारिये परमपिता का सर्वशक्तिमान रूप !
पर दुर्भाग्य आज मानव के पास ईश्वर की शरण मे जाने का सत्संग मे जाने का समय नहीँ । और तो और एक सीमा बाँध दी है कि जब 60 साल के ऊपर हो जायेगे तब ईश शरण मे जायेगे आश्चर्य होगा कोई नवयुवक युवती इस ओर कदम बढाये तो दुनियावाले मज़ाक शुरू कर देते है ।
अगर मोदी जी एक माह के लिए बिजली मुफ़्त करा दे तो हम थकेगे नहीँ मोदी गुणगान करते करते पर उस परमेश्वर ने इतना कुछ दिया वो भी निशूल्क अहो दुर्भाग्य उस परमपिता हेतु किसी के पास समय नहीँ ?
मानसिकता बदलिए और प्रतिदिन प्रातः सायं ईश्वर भक्ति हेतु समय दीजिए ।
और लिख लीजिए आत्मिक बल केवल ईश्वर भक्ति से मिलता है और आज आत्मिक बल का सर्वथा अभाव दिखता है ।
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