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धर्म बनाम धार्मिक+राजनीतिक संगठन-
कुछ लोग भगवान को मंदिर,मस्जिद,चर्च,गुरुद्वारे में ढूंढते रहते हैं।
मन शांत करके महसूस नहीं करते कि आखिर वो कहां है।अगर महसूस करें,तो पता चलेगा कि वो तो हर जगह है,हम ही खोये हुए हैं।
कहने का मतलब ये नहीं है कि हम मंदिर में न जायें,जायें जरूर जायें और जाना भी चहिये।लेकिन वहाँ जहाँ धर्म के बारे में ज्ञान मिलता हो,जहाँ राजनीति के बारे में ज्ञान मिलता हो और वहाँ पर दान भी दें।जहां इन उद्देश्यों को लेकर कोई काम न हो रहा हो,तो वहां कतई न जायें और न ही कोई दान दें।क्योंकि वहाँ पर दान देने से ऐसे स्थल और ज्यादा संख्या में पनपेंगे।जोकि हमें ही राजनीतिक रूप से कमजोर करेंगे।
बहुत समय पहले मंदिर सर्वसमाज को संगठित करने के लिए बनाये गये थे।वहाँ पर जाकर लोग शान्ति के साथ बैठकर धार्मिक बातें सुनते थे।अधर्मियों से कैसे लडा जाये,ऐसी बातें वहाँ पर लोगों को बताई जाती थी।आत्मा का परमात्मा के हाथ साक्षात्कार कैसे होता है,मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है,ऐसी बातें बताई जाती थी।लेकिन आज के समय में बहुत सारे मंदिर बिजनिस व नशाखोरी के अड्डे बन चुके हैं।जो अपना उद्देश्य ही खत्म कर चुके हैं।
पहले मंदिर की जगह सिर्फ यज्ञशालायें होती थी।कोई मूर्ति नहीं थी,एकेश्वर को ही माना जाता था।सब एक थे।जो लोग अधर्म का काम करते थे,वो सजा से नहीं बच पाते थे।जितना बडा वो गलत काम करते थे,उतना ही बडा दंड उनको तुरंत ही मिल जाता था।जब से यज्ञशालाओं की जगह मंदिर बने तब तक तो थोडा ठीक था,लेकिन जब मंदिरों में पोंगे पंडितों द्वारा कथित अवतारों की विभिन्न प्रकार की मूर्तियां सजा-सजाकर रखी जाने लगी,तो विभिन्न प्रकार की मूर्तियों से लोगों में वैचारिक विभिन्नता पैदा हो गई और लोग बंट गये।फलत: धीरेधीरे एक धर्म की जगह विभिन्न प्रकार के मत-मजहब बन खडे हुए।नतीजा आज सामने है।अधर्मी लोगों ने धर्म के नाम पर राजनैतिक संगठन बना लिए और एकजुट होकर वोटबैंक बन गये।आज के समय में जितने धर्म के नाम पर संगठन बने हुए हैं,वो सब के सब राजनीतिक संगठन हैं।जो धर्म की तो केवल आड लेते हैं,लेकिन करते राजनीति हैं।
आश्चर्य की बात ये है कि आज के समय के बहुत ज्यादा पढे-लिखे लोगों को भी ये तक पता नहीं है कि आखिर ये हो क्या रहा है कि वो किसी के वोटबैंक क्यों नहीं हैं।कारण क्योंकि वो किसी भी धार्मिक या राजनीतिक संगठन से नहीं जुडे हुए हैं।
जबसे विभिन्न देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्थायें लागू हुई हैं,तब से जो एक जगह वोट देता है,वो ही सरकार बनवाता है।इसलिए उसकी बातों को ही प्राथमिकता दी जाती है।इस वजह से नेता लोग उनकी वोट के लालच में उनकी अनुचित बात भी मानते हैं और धार्मिक लोगों के विभिन्न प्रकार की अवतारवादी विचारधारा में बंटे हुए रहने के कारण उनकी उचित बात भी नहीं मानी जाती है।अब ऊपर जो व्यवस्था है,मतलब जो संविधान है वो धार्मिक नीतियों वाला नहीं है,बल्कि वो राज करने वाली नीतियों को आधार बनाकर बनाया गया है।राजनीति तोडती है,धर्म जोडता है।राजनीति धर्म की दुश्मन होती है।इसी वजह से नेता लोग फूट डालो और राज करो की नीति को अपना धार्मिक लोगों में फूट डालते हैं और जिन राजनीतिक संगठनों में वे फूट नहीं डाल पाते वे उन संगठनों के घुटनों में रहते हैं।यही कारण है कि ऐसे राजनैतिक संगठन जो वोटबैंक की राजनीति के कारण मुफ्त की सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं,उनमें अनेक लोग सुविधाएं प्राप्त करने के लिए मतांतरित होकर जा रहे हैं।वोट देने के बदले में वे चाहे कुछ भी करें,नेता लोग उनका उनकी वोट के लालच के लिए खुलेआम सपोर्ट करते हैं।आतंकवाद इसी वजह से फैल रहा है,अन्यथा सबको पता है कि इसमें कौन से तत्व लगे हुए हैं और क्यों।नेताओं को तो सबसे पहले पता है।
इस नाजायज सपोर्ट के कारण ही कुछ मत-मजहब वालों की संख्या बहुत ही भयानक रूप से बढ रही है।कुछ लोगों का तुष्टिकरण इसी वजह से किया जा रहा है कि वो अलग-अलग जगह वोट न डालकर एक ही पार्टी को वोट करते हैं।वोट के बदले किसी वर्ग को खुश रखना ही तुष्टिकरण है।
ऐसे लोग एकेश्वर में विश्वास करते हैं।इस कारण
उनमें कोई वैचारिक मतभेद नहीं होता।
लेकिन हमारे बीच के कुछ लोग अब भी खुले घूम रहे हैं भीड़ की तरह।उन्हें किसी संगठन से कोई मतलब नहीं है।आज के राजनैतिक माहौल में किसी धार्मिक/राजनैतिक संगठन में आना बहुत जरूरी है।अब राजनीतिक युग है,धार्मिक युग नहीं है कि आपके किसी राजनीतिक संगठन में आये बगैर ही हर किसी की समस्या का हल हो जायेगा।ये राजनैतिक आंदोलन का जमाना है,धार्मिक आंदोलन का नहीं।ऐसे किसी संगठन से जुडना जरूरी है,जो राजनीतिक भी हो व धार्मिक भी।जो अपने हक के बारे में आपको बताये।अपने हक के लिये इकट्ठा होकर लडना सिखाये।
कुछ लोग कहते हैं कि मैं बहुत कट्टर हूँ।ऐसा कहने से कोई फायदा नहीं मिलने वाला जब तक कि वो किसी अच्छे संगठन में न हो।उसे ये नहीं पता है कि धर्म एक होता है और आज उसकी आड में सिर्फ राजनीति की जा रही है।वो तो आज के राजनीतिक माहौल में है ही नहीं कहीं।आज के समय में स्वार्थी व राजनैतिक लोगों ने बहुत सारे नकली धर्म बना लिये हैं,जो धर्म नहीं बल्कि मत(अपने निजी विचार)कहलाते हैं।ईश्वर एक होता है,ईश्वर भी बहुत सारे बना लिए हैं।जिस संगठन में जितने कम धार्मिक तत्व हैं और जितने अधिक से अधिक राजनीतिक तत्व हैं,वो संगठन उतना ही देश के नेताओं को अपने घुटनों पर झुका रहा है।ईसाई व इस्लाम संगठन इसके बडे उदाहरण हैं।
इसलिए लोगों को धर्म की रक्षा व शान्ति स्थापना के लिए ऐसे संगठन से जुडना चहिये जो उन्हें राजनीतिक और धार्मिक रूप से जागरूक करे।अन्यथा अधर्म/पाप बढ रहा है।अधर्मी/राजनैतिक संगठन आपको उचित समय आने पर अपने संगठन में जबरदस्ती मिला लेंगे।न आपकी संस्कृति बचेगी और न ही संस्कार।
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