ओ३म्
गुरु विरजानन्द 🙏🙏🙏
गुरु विरजानन्द का जन्म पंजाब में करतारपुर के समीप गंगापुर गांव में सन् 1778 मे हुआ था । उनके पिता का नाम पं. नारायण दत्त था । जब वे पाच वर्ष के थे तभी उनकी दोनों आँखें चेचक रोग से चली गई ।
8 वर्ष की अवस्था में उनके माता पिता स्वर्ग चले गए ।12 वर्ष की आयु में उन्होंने घर त्याग दिया ।क्योंकि घर में किसी ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया । ऋषिकेश में स्वामी पूर्णानन्द सरस्वती जी से सन्यास की दिक्षा ली ।स्वामी जी ने उनका नाम विरजानन्द रखा ।
लोग उन्हें प्रज्ञाचक्षु कहते थे क्योंकि उनकी बुद्धि बडी तीव्र थी । अपने बुद्धि वैभव से लोगों को चकित कर देते थे ।
सन 1860 मे महर्षि दयानंद सरस्वती उनके शिष्य बने ।1868 मे उनका देहावसान हुआ, जिसे सुनकर महर्षि दयानंद सरस्वती ने कहा - आज व्याकरण का सूर्य अस्त हुआ ।उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य आर्ष ग्रन्थों के ज्ञान का प्रसार करना था ।
from Tumblr http://ift.tt/1EWCp47
via IFTTT
No comments:
Post a Comment