ईश्वर निराकार है साकार नहीं ।
अजब हैरान हू भगवन! तुम्हें क्योंकर रिझाऊ में,
कोई वस्तु नहीं एसी जिसे सेवा में लाऊँ में ।।
करू किस तौर आवाहन कि तुम मौजूद हो हर जगह,
निरादर है बुलाने को, अगर घण्टी बजाऊ में ।।
तुम्ही हो मुर्तियो में भी, तुम्ही व्यापक हो फूलों मे,
भला भगवान् पर भगवान को क्योकर चढाऊ मे ।।
लगाना भोग कुछ तुमको, यह इक अपमान करना है,
खिलाता है जो सब जग को, उसे क्योकर खिलाऊ में ।।
तुम्हारी ज्योति से रोशन है सूरज,चाँद और तारे ,
महा अंधेर है कैसे तुम्हें दिपक दिखाऊँ में ।।
भुजाऐं हैं न गर्दन है, न सीना हैं, न पैशानी ,
तुम हो निर्लेप नारायण! कहाँ चन्दन लगाऊँ मे ।।
बडे नादान है वे जन जो गडते आपकी मूरत,
बनाता है जो सब जग को, उसे क्योंकर बनाऊँ में ।।
ओउम् क्रन्वतोविश्वमार्यम् 🚩 🚩 🚩
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