वेदऋषि दयानंदजी ने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना।
उन्होंने कर्मसिद्धान्त ,पुनर्जन्म ,ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया।
उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों और रूढियों-बुराइयों को दूर करने के लिए, निर्भय होकर उन पर आक्रमण किया।
वे ‘संन्यासी योद्धा’ कहलाए।😎🚩
जय गुरुदेव दयानंद🚩
कृण्वन्तो विश्वमार्यम्🚩
जयतु हिन्दूराष्ट्रम्🚩
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