उद्वृह रक्षः सहमूलमिन्द्र वृश्चा मध्यं प्रयग्रं श्रृणीहि ।
आ कीवतः सललूकं चकर्थ ब्रह्मद्विषे तपुषिं हेतिमस्य ।। ( ऋग्वेद ३/३०/१७ )
अर्थ :– धर्मात्माओं पर कभी शस्त्र मत उठाओ । और दुष्टों को मारे बिना मत छोड़ो ।
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