वीर माता विद्यावती
सरदार अर्जुन सिंह जी के तीन पुत्र थे- किशन सिंह, अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह। किशन सिंह जी को महान क्रन्तिकारी भगत सिंह का पिता होने का गौरव प्राप्त है। इनका विवाह विद्यावती से हुआ, जिनसे 9 सन्ताने पैदा हुई।। माता विद्या वती धार्मिक स्वभाव की बहादुर स्त्री थी। उन्होंने अपने सभी बालकों में देशभक्ति और समाज सेवा के भाव उतपन्न किये।। वह पूण्य आत्मा थी।
भगत सिंह का अपनी माता से अगाध प्रेम था। जब एक बार उनकी माता अत्यंत बीमार हुई तो वह भगत सिंह को देखने के लिए तड़पने लगी। पिता किशन सिंह ने भगत को बुलाने के लिए एक विज्ञापन निकाला ताकि उसे पढ़कर वह घर लौट आए।। ऐसा ही हुआ ।। माँ ने भगत को गले लगा लिया और खूब बातें कर के अपना मन हल्का किया। माता भगत सिंह की शादी करना चाहती थी भगत चुप चाप घर से निकल क्रांतिकारियों से जा मिले माँ मन मसोस कर रह गई।
माता विद्या वती के ससुर सरदार अर्जुन सिंह कट्टर आर्य समाजी थे अपने घर में नित्य यज्ञ करते थे उन्ही से प्रेरणा लेकर माता विद्यावती ने आर्य समाज के समाज सुधार के कार्यों स्वयम को अर्पित किया।।
माता विद्यावती ने अपने जीवन काल में अपने पति, देवरों और पुत्रों को ब्रिटिश शासन की दी गई भयंकर यातनाएं सहते देखा वे आजादी के बाद भी जिन्दा रही उन्हें पंजाब माता की उपाधि से विभूषित किया गया।
माता विद्यावती के समान ही उनकी देवरानी अमर क्रन्तिकारी सरदार अजीत सिंह की पत्नी हरनाम कौर ने अपना सारा जीवन देश की आजादी के लिए विदेशों में भटक रहे पति की प्रतीक्षा में व्यतीत किया। जब अजीत सिंह भरी कष्ट उठा कर विदेश से लौटे तो भाव विह्वल होकर बोले “ सरदारनी मै तुझे सुख न दे सका हो सके तो मुझे माफ़ करना।
माता विद्यावती जब अपने वीर पुत्र भगत सिंह से फाँसी लगने से पूर्व जेल में अंतिम भेंट करने गई तो ठहाकों के बीच भगत सिंह ने कहा ” बेबे जी मेरी लाश लेने मत आना कुलवीर नूँ भेज देना कहीं तू रो पड़ी तो लोग कहेंगे की भगत सिंह की मां रो रही है" इतना कह कर देश का यह दीवाना भगत सिंह पुनः जोर से हंसा ।
आज के दिन 01 जून सन् 1975 को 96 वर्ष की आयु में इस वीर प्रसविनी माँ विद्यावती का शरीरांत हुआ।
समस्त भारतवर्ष इस वीर माता का ऋणी रहेगा।। माता को शत शत नमन।
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