जिस प्रकार जल शुद्धि के लिए उपयुक्त है सम्पूर्ण है ठीक वैसे ही विद्वान ज्ञान का भंडार है
ज्ञान वर्धन के लिए विद्वानों की शरण में जाना चाहिए और जितना हो सके उनसे ज्ञान लेते रहना चाहिए
समय अलग है विद्वानों का तिरस्कार भी होता रहता है जो बिलकुल गलत है और भारत के पतन का मूल कारण भी यही है
यजुर्वेद ६-१७(6-17)
इ॒दमा॑पः॒ प्रव॑हताव॒द्यञ्च॒ मलञ्च॒ यत् । यच्चा॑भिदु॒द्रोहानृ॑तं॒ यच्च॑ शे॒पे अ॑भी॒रुण॑म् । आपो॑ मा॒ तस्मा॒देन॑सः॒ पव॑मानश्च मुञ्चतु ॥६-१७॥
भावार्थ:- जैसे जल सांसारिक पदार्थों को शुद्धि का निदान है, वैसे विद्वान् लोग सुधार का निदान हैं, इस से वे अच्छे कामों को करें। मनुष्यों को चाहिये कि ईश्वर की उपासना और विद्वानों के संग से दुष्टाचरणों को छोड़ सदा धर्म में प्रवृत्त रहें।
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