१६ आषाढ़ 30 जून 15
😶 “ भूमिमात: ” 🌞
🔥🔥ओ३म् उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं सन्तु पृथिवी प्रसूता:।🔥🔥
🍃🍂 दीर्घ न आयु: प्रतिबुध्यमाना वयं तुभ्यं बलिह्त: स्याम ।। 🍂🍃
अथर्व० १२ । १ । ६२
शब्दार्थ :- हे भूमे!
हम तुझसे उत्पत्र, तेरे पुत्र है, अतएव तेरी गोद,तेरे आश्रय-स्थानों के सब पदार्थ हमारे लिए हों और आरोग्यवर्धक व रोगनाशक हों हमारी आयु दीर्घ हो जागते हुए,ज्ञान-स्म्पत्र होते हुए तेरे लिए अपनी बलि देनेवाले हो ।
विनय :- हे भूमिमात: !
हम तेरे पुत्र हैं,तुझसे उत्पत्र हुए है । यह पार्थिव देह हमें तेरे रज:कणों से मिली है ।
हे मात: !
हमें अपनी गोद में बिठाओ । तेरी आनंदमयी गोद में बैठकर हम सम्पूर्ण मातृसुख को प्राप्त करें,तेरे दुग्धामृत का पान भी करें । तू हमे केवल सुखमय आश्रय-स्थानों को ही प्रदान करती,अपितु अपने उन सर्वस्थानों में तू हमें हमारी उपयोगी भोग्य-पदार्थों को भी देती है । तेरी ऐसी गोद में हमारा आश्रय पाना,हमारे लिए रोग रहित,निरन्तर-निर्बाध पुष्टि(उत्रति)का देनेवाला हो ।
हे विस्तृत मातृभूमे !
तेरे आश्रय में रहते हुए हमे जो तेरे अत्र,फल,औषध, जल,वायु,धन,पशु,मान,रक्षा,विद्या,सुख मिलते है वे हमे ऐसे शुद्ध ओर उचित रूप में मिलते रहें कि ये हमारे रोगों और दुखों को हटाकर हमारी स्वास्थ्य वर्धक पुष्टि को ही करते जाएँ और हमारी मानसिक,शारीरिक और आत्मिक उत्रती ही साधते जाएँ । किन्तु
हे मात: ! हममे तेरे प्रति कर्तव्य का बोध ऐसा जाग्रत हो जाए कि हम तेरे लिए सब कुछ बलिदान करने को सदा उद्यत रहें । तुझसे मिला हुआ यह शरीर यह आयु यह प्राण यह पुष्टि यह धन किस काम का है? यदि ये तेरी वस्तुएं आवश्कता पड़ने पर तेरे लिए समर्पित ना हो सकें -तेरे दूध को चुकाने का समय आने पर यदि हम इन्हें भेंट चडाने से हिचके-तो ऐसे धन,ज्ञान,और जीवन का धिक्कार है ! इन पापमय वस्तुओं का भूमि पर रहना व्यर्थ है ! नहीं,हम सर्वस्व तुझपर बलि चढा देने को सदा उद्यत रहेंगे ।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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