उत्तम सुखों को प्राप्त करने का उपाय
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संस्कृत से हिंदी में पथार्थ: स्वामी दयानंद जी
ऋ.1/3/3:-यौगिक भावार्थः-राजिंदर कुमार थुल्ला
हे उपासना योग यज्ञ के अभ्यास करने वाले विद्वानों! जो तुम सूर्य रूपी मस्तिस्क से नीचे पृथ्वी (गुदा द्वार से अंड कोष के मध्य का स्थान, ओउम् भू:), और जल (पेड़ू में,ओउम् भुवः) और अग्नि (नाभि में, ओउम् स्व:) में नीचे से ऊपर एकाग्र किर्या सिद्ध करते हो। ऐसा नीचे ऊपर बार बार अभ्यास करते हो तो तुम इसमें सप्तमसार पथार्थ(वीर्य) विद्या को सिद्ध करके उर्जा कणों को मस्तिस्क के आकाश में चमकाते हो और उसके फल स्वरूप् ब्रह्म को देखते हो। हे ऐसे विद्वान् लोगो! ये जो इस उपासना योग यज्ञ का प्राण मार्ग (सुषुम्णा नाड़ी में नीचे गुदा द्वार व् अंड कोष के मध्य का स्थान–पृथ्वी–ओउम् भू: 1, जल-पेड़ू में–ओउम् भुवः–2, अग्नि—नाभि में–ओउम् स्वः–3, वायु–हिरदय में–ओउम् मह:-4, आकाश–कंठकूप–ओउम् जन:-5, बुद्धि रूप इंद्र–नासिका का अग्र भाग–ओउम् तपः–6, सिर में चोटे का स्थान—परमात्मा–ओउम् सत्यम–7,) है;यह दुखो का नाश करने वाला है;इसमे एक भी गुण मिथ्या नहीँ है। हे विद्वानों! जो अपने शरीर के अंदर उपासना योग यज्ञ अभ्यास में इस व्यवहार को प्राप्त करने वाले है; वे ऊपर के मन्त्रो में कहे हुए असिवनो—अर्थार्थ जल और अग्नि को इस विद्या में सयुक्त कर उपकार में ले आवो गे तो उस समय तुम उत्तम सुखो को प्राप्त होवोगे। अतः हे विद्वानों! वेदों में वर्णित उपासना योग यज्ञ को अपने शरीर के अंदर अभ्यास द्वारा जानो और सुखी होवो।
_______राजिंदर कुमार थुल्ला
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