जब हम वेदो से दूर हटे तब महाभारत का युद्ध हुआ जिसमे हमारा समस्त ज्ञान विज्ञानं लगभग समाप्त सा हो गया क्षत्रियो के साथ ब्राह्मणों को भी युद्ध लड़ना पड़ा उसके बाद सत्य विद्या वेद से हम दूर होते चले गए कुछ स्वार्थी लोगो ने अपने मत पन्थ सम्पर्दाय बना लिये निराकार ओम् ईश्वर जिसको योग उपासना से प्राप्त करने की विधि वेद ने बताई थी वो छूट गयी और मनगढ़त पूजा पद्धति गढ़ दी गयी धर्म के नाम पर व्यापार होने लगा सबसे पहले यहाँ बौद्ध फिर जैनी ईशाई व् इश्लाम ने पाव पसारे और एक समय ऐसा भी आया संसार की शिरोमणि आर्य जाति म्लेछो की गुलाम बन गयी हजारो वर्षो की गुलामी में इनको इतना प्रताड़ित किया गया जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती हैं।अरे 2 -2 अन्ने में हमारी बहन बेटियो की बोली लगाई गयी (दोकतरे हिन्दुस्थान दो दो दिनार ) इस भयंकर काल में कोई नही था जो हमारे स्वाभिमान को जगाता मित्रों जरा विचारों जिन आर्य पूर्वजो ने संसार में चक्रवर्ती साम्राज्य स्थापित किया हो करोड़ो वर्षो तक संसार का नेतृत्व किया हो उसके वंसजो को हजारो वर्षो की गुलामी झेलनी पड़े कुछ तो कारण रहे होँगे।गुलामी की इस भयानक रात में ऋषि दयानंद का आगमन हुआ उसने हमे बताया की हम क्या थे और क्या हो गये वो हमे जगाता रहा उठाता रहा और हम उसको जहर पिलाते रहे उस पर पत्थर बरसाते रहे ओह कितने मुर्ख थे हम जो हमे बचाने आया हमने उसे ही अपना शत्रु समझा और अन्तः उसे मार ही दिया इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता ह जो हमारा रक्षक था उसे ही हमने अपना भक्षक समझा।वो ऋषि जाते जाते हमे सत्यार्थ प्रकाश रूपी ऐसा शस्त्र दे गया जिसको पढ़कर अनेको की काया पलट हो गयी अनेको युवाओं ने ऋषि को अपना आदर्श मान स्वतन्त्रता हेतु अपने प्राण न्यौछावर कर दिये इतिहास बताता ह 85 %आर्य समाजी क्रांतिकारियों ने राष्ट की आजादी हेतु अपने प्राण देशहित आहूत कर दिये।ऋषि के अनुयायियों ने आर्य समाज को वो अग्नि बना दिया जिसके आगे किसी की नही चली ।देश में फैली अविद्या अभाव अन्याय पाखण्ड अन्धविस्वास् रूपी बीमारी को आर्य लोग समाप्त करने लगे ।1947 को देश भौतिक रूप से आजाद हो गया और दुर्भाग्य से देश ऐसे काले अंग्रेजो के हाथो में चला गया जो पशुओं के भी बड़े भाई थे इन दुष्टों ने देश की पुनः दुर्दशा कर डाली और इससे भी बड़ा दुर्भाग्य ये जिस ऋषि के शिष्यों को देश सम्भालना था वो अपने छोटे छोटे घर घरोंदों में फंस गये और देश फिर पाखण्ड अन्धविश्वास भृष्टाचार आतँकवाद रूपी समाजिक शत्रुओं की चपेट में आता गया और इसके दोषी केवल और केवल आर्य समाजी ही ह क्योकि ऋषि दयानंद ने देश इनको सौपा था इनका कर्तव्य था ये समाज को आर्यसमाज बनाते अर्थात श्रेष्ठ समाज बनाकर पुनः आर्यावर्त बनाते ओह दुर्भाग्य ये आपस में ही लड़ने लगे देश लूटता रहा और ये जमीन व् भवनों के छोटे छोटे टुकड़ो पर लड़ते रहे।अरे आर्यो ऋषि दयानंद की आत्मा रोती होगी उन 7 लाख से जायदा क्रान्तिकारियो की आत्मा रोती होंगी जिन्होंने भरी जवानी में हँसते हँसते फाँसी के फंदे चूमे थे।आर्यो अभी भी समय ह सम्भल जाओ अन्यथा मिटा दिये जाओगे ।सम्भाल लो इस आर्य जाति (हिन्दुओ को) जिसको आपसी फूट के राक्षस ने कहि का नही छोड़ा जो ज़ोक की भाँति दीमक की भाँति इनको खोकला कर रही हैं और इनको पता तक नही हैं।ये कबूतर की भाँति आँख मूँदकर सुनहरे सपने देख रहे हैं और विधर्मी इन्हें मिटाने का षड्यंत्र रच रहे हैं।आओ हम पुनः अपने श्रेष्ठ पूर्वजो को स्मरण कर वेद की आज्ञाओं का पालन करे और दृढ़ आर्य बनकर आर्यावर्त की नींव रखें निश्चित जानो वो दिन दूर नही जब पुनः संसार भर के मनुष्य ये कहेंगे की ओह आर्यसमाज फिर वहीँ अग्नि बन गया जिससे पूरा संसार सुख रूपी सुगंध से पोषित होगा।यही कामना थी दयानंद ऋषि की ,यही गूँज थी उनके प्रत्येक स्वर की,*कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम *।।निवेदन कर्ता।।अमित आर्य दिल्ली 9266993383
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