Thursday, June 11, 2015

।।ओउम्।। क्‍या आप जानते हैं? आज-कल के बच्‍चे इतने समझदार और चतुर होते हैं कि कभी-कभी उनके धर्म...

।।ओउम्।।
क्‍या आप जानते हैं?
आज-कल के बच्‍चे इतने समझदार और चतुर होते हैं कि कभी-कभी उनके धर्म सम्‍बन्‍धी प्रश्नों का सटीक उत्तर उनके माता-पिता भी नहीं दे पाते हैं क्‍योंकि वे स्‍वयं स्‍वाध्‍याय ही नहीं करते। माता-पिता को निरुत्तर कर बच्‍चे स्‍वयं को ही श्रेष्‍ठ समझने लगते हैं। स्‍मरण रहे कि बच्‍चे की सर्वप्रथम गुरु उसकी माता होती है, द्वितीय गुरु उसके पिता तथा तृतीय गुरु उसके विद्यालय के शिक्षक होते हैं। यदि ये तीनों ही गुरु बच्‍चों को धार्मिक शिक्षा से वञ्चित रखते हैं तो आप ही सोचिये कि हमारे बड़े होने का क्‍या अर्थ रह जाता है तथा हमारी अपनी सन्‍तान बड़ी होकर क्‍या और कैसी बनेगी?
धर्म की सही जानकारी के बिना मनुष्‍य, मनुष्‍य नहीं बन सकता। दिखने में चाहे सभी मनुष्‍य जैसे लगते हों परन्‍तु वास्‍तव में वही मनुष्‍य है जिसे मनुष्‍यता का ज्ञान है तथा अपने कर्त्तव्‍यों का पालन करता है। धर्म किसी को हिन्‍दू, मूस्लिम, सिक्‍ख या ईसाई बनना नहीं सिखाता अपितु उसे मनुष्‍य बनना सिखाता है। क्रिश्चियन स्‍कूलों में मदर मैरी एवं जीसस् क्राईस्‍ट की प्रार्थना सिखाई जाती है, मुस्लिम मदरसों में इस्‍लाम का इल्‍म तथा नमाज़ पढ़ना सिखाया जाता है, हिन्‍दुओं के पाठशलाओं में मूर्ति के समक्ष प्रार्थना गीत गाने की शिक्षा दी जाती है और आर्य समाजों के विद्यालयों में संध्‍या और हवन करना सिखाया जाता है और साप्‍ताहिक ‘धार्मिक शिक्षा’ की कक्षा प्रदान की जाती है। शेष बच्‍चे ऐसे स्‍कुलों में पढ़ते हैं जहाँ प्रारम्भिक सुविधाएँ (लिखने के लिये काले बोर्ड, पढ़ने के लिये पुस्‍तकें और यहाँ तक कि बैठने तक की सुविधा) उपलब्‍ध नहीं होती। हमारा भविष्‍य कैसा होगा, इसका निर्णय आप महानुभव स्‍वयं ही लगा सकते हैं।
सर्वविदित है कि हमारे देश में धर्मनिर्पेक्ष का नारा लगाकर भोली-भाली जनता को गुमराह किया जाता है क्‍योंकि धर्म मात्र एक होता है, अनेक नहीं। बच्‍चे नादान होते हैं। उनको बचपन में जो पढ़ाएँगे सा सिखाएँगे, वे जीवन भर उसीको सत्‍य मानकर व्‍यवहार करते हैं। सत्‍यासत्‍य के भेद को समझने के लिये उन्‍हें धर्म का सही ज्ञान प्रदान कराना अत्‍यन्‍तावश्‍यक है।
कुछ वर्ष पूर्व मुझे अपने मित्रों सहित गान्‍धीधाम स्थित ‘जीवन प्रभात’ में जाने का सुवासर प्राप्‍त हुआ। वहाँ के बच्‍चों से मिलकर बहुत प्रसन्‍नता हुई। मैंने तत्‍काल निर्णय लिया कि मेरी आगामी पुस्‍तक आधुनिक बच्‍चों के लिये होगी, जिसका शीर्षक होगा “बाल प्रश्नोत्तरी”। “बाल प्रश्नोत्तरी” के माध्‍यम से हमारे देश के होनहार बच्‍चे ही नहीं, उनके माता-पिता एवं सगे-सम्‍बन्‍धी को भी सत्‍य सनातन वैदिक धर्म के बारे में सामान्‍य ज्ञान प्राप्‍त हो सकेगा। कुछ ही महीनों के भीतर ‘आर्य समाज गांधीधाम’ के आचार्य श्री वाचोनिधि के सहयोग द्वारा “बाल प्रश्नो प्रश्नोत्तरी” पुस्‍तक का प्रकाशन‘जीवन प्रभात’ के बच्‍चों के लिये निःशुल्‍क वितरण किया गया। इस पुस्‍तक में‘धार्मिक शिक्षा’ की प्रारम्भिक आवश्‍यक जानकारी उपलब्‍ध कराई गई है।
‘बाल पश्‍नोत्तरी’ को बच्‍चों तथा उनके परिवार के लोगों ने बहुत पसंद किया है। जिन बच्‍चों के माता-पिता ने इस पुस्‍तक को देखा है उनके विशेष आग्रह पर मैं उपरोक्‍त पुस्‍तक को परिवर्धित करके समाज के सभी स्‍कूली बच्‍चों के लिये ‘बाल शंका-समाधान’ के रूप में प्रस्‍तुत करने का प्रयास किया है ताकि आधुनिक स्‍कूलों (विद्या-मन्दिरों) के विद्यार्थी धार्मिक शिक्षा से परिचित हो सकें। ‘माडर्न स्‍कूलों’ में सब कुछ पढ़ाया जाता है और धर्मिक शिक्षा के नाम पर निजी मत-मज़हबों का पाठ पढ़ाया जाता है। माता-पिता अपने-अपने काम–काज में व्‍यस्‍त रहते हैं इसलिये मोर्डन बच्‍चों को सही मार्गदर्शन की अत्‍याधिक आवश्‍यकता होती है। जीवन में सही मार्गदर्शन मात्र धर्म ही प्रदान कर सकता है। मनुष्‍य कितना ही पढ़-लिख ले, कितनी ही डिग्रियाँ इकट्ठी कर ले, कितना ही धन कमा-जमा ले, फिर भी वह अपने जीवन में अधूरेपन का अनुभव करता है। धन-दौलत से जीवन की भौतिक आवश्‍यकताएँ तो पूर्ण हो सकती हैं। ज़‍न्दिगी में धन-दौलत ही सब कुछ नहीं है। सब कुछ होने पर भी हम किसी वस्‍तु की कमी को अनुभव करते हैं। जीवन के उस अधूरेपन को मात्र ‘धर्म’ ही दूर कर सकता है। धर्म को जानकर ही मनुष्‍य जीवन सफल बना सकता है। यही समय की माँग है। ईशकृपा एवं शुभ कामनाओं सहित
आपका अपना
मदन रहेजा
प्राथमिक विभाग
(6 से 10 वर्ष के बच्‍चो के लिये प्रश्न एवं उत्तर)
1. ऐसे कितने पदार्थ हैं जो कभी पैदा नहीं होते? (ईश्वर, जीव और प्रकृति)
2. वो कौन सी वस्‍तुएँ हैं जो कभी नष्ट नहीं होतीं? (ईश्वर, जीव और प्रकृति)
3. संसार को कौन बनाता है? (संसार को ईश्वर बनाता है।)
4. हम सब कौन हैं? (हम सब मनुष्‍य हैं - आत्‍माएँ हैं।)
5. हम कहाँ रहते हैं? (हम इस संसार में रहते हैं।)
6. यह सारा संसार किस में रहता है? (सारा संसार भगवान् में रहता है।)
7. भगवान् कहाँ रहता है? (ईश्वर सब जगह, सब वस्‍तुओं के भतर-बाहर तथा सब के दिल में रहता है।)
8. क्‍या मूर्ति में भी भगवान् रहता है? (हाँ, वह मूर्ति में भी रहता है।)
9. क्‍या मूर्ति भगवान् है? (नहीं! मूर्ति भगवान् नहीं है।)
10. क्‍या मूर्ति और भगवान् एक ही वस्‍तु है? (नहीं ! दोनों अलग-अलग वस्‍तुएँ हैं।
11. मूर्ति में यदि ईश्वर रहता है तो वह हमें दिखाई क्‍यों नहीं देता? (क्‍योंकि हम मूर्ति के अन्‍दर नहीं रहते, हम मूर्ति के बाहर रहते हैं इसलिये वह हमें दिखाई नहीं देता। जहाँ हम रहते हैं ईश्वर वहाँ दिखता है।)
12. हम तो यहाँ हैं फिर ईश्वर कहाँ रहता है? (वह हमारे अन्‍दर रहता है। हम आत्‍मा हैं, आत्‍मा में रहता है।)
13. शरीर में आत्‍मा कहाँ रहता है? (हमारे शरीर में आत्‍मा, दोनों भृकुटियों के बीच में, आँखों के पीछे, अन्‍दर की ओर रहता है।)
14. परमात्‍मा हमें कैसे दिखाई देता है? (आँख बन्‍द करके उसको याद करो तो उसका अनुभव अर्थात् दर्शन होने लगता है।
15. भगवान् को हम किस नाम से पुकारें? (‘ओ३म्’ नाम से)
16. परमात्‍मा कितने होते हैं? (ईश्वर एक होता है जिसका नाम –‘ओ३म्’ है।)
17. क्‍या ईश्वर हमारी आवाज़ सुनता है? (वह सब की आवाज़ सुनता है, हमारे मन की आवाज़ भी सुनता है।)
18. ईश्वर कौन सी भाषा समझता है? (वह सब की भाषा समझता है। हम अपने मन में जो भी सोचते हैं या मुँह से बोलते हैं, वह ईश्वर सब की सुनता है और सब समझता है।)
19. ईश्वर हमारा कौन लगता है? (वह हमारा सबकुछ लगता है। ईश्वर हम सब का माता-पिता-मित्र-बन्‍धु लगता है। हम सब उस परमात्‍मा की सन्‍तान हैं। हम उसके के बच्‍चे हैं।)
20. वह सारा समय क्‍या करता है? (परमात्‍मा हर समय हम सब की सहायता करता है। उसने हमारे लिये ही पृथ्‍वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश बनाया है। उसने हमारे लिये सूर्य, चन्‍द्रमा, तारे बनाए हैं। वह पूरा संसार बनाकर उसकी देख-भाल करता है।)
21. हमने भूत की कहानियाँ सुनी हैं, क्‍या भूत भी होते हैं? (नहीं ! भूत-वूत कुछ नहीं होते। अच्‍छे बच्‍चों को ऐसी कहानियाँ नहीं सुननी चाहियें।)
22. मास्‍टर जी के कमरे में टी॰ वी॰ लगी है। वे स्‍वयं देखते हैं किन्‍तु हम को देखने से मना करते हैं, ऐसा क्‍यों? (क्‍योंकि टी॰ वी॰ देखने से छोटे बच्‍चों की आँखें ख़राब होती हैं। जब आप बड़े हो जाओगे तो समझ जाओगे।)
23. हम बड़े कैसे होंगे? (रात को जल्‍दी सोना, सवेरे जल्‍दी उठना, पढ़ाई के मन लगाके पढ़ाई करना, खेल के समय ख़ूब खेलना और ठीक समय पर भोजन करना – फिर आप बड़े हो जाओगे।)
24. हवन करने से क्‍या होता है? (हवन करने से वायु शुद्ध होती है, बुद्धि तेज़ होती है, आयु बढ़ती है और मनुष्‍य स्‍वस्‍थ रहता है और वह कभी बीमार नहीं पड़ता है।)
25. क्‍या गाली देना बुरी बात होती है? (बहुत बुरी बात होती है। ईश्वर को भी अच्‍छा नहीं लगता इसलिये गाली देने से पाप लगता है। हमें कभी किसी को भी गाली नहीं देनी चाहिये। अच्‍छे बच्‍चे कभी किसी को गाली नहीं देते हैं।)
26. यदि कोई हमें गाली दे तो हमें क्‍या करना चाहिये? (उसको समझाना चाहिये कि अच्‍छे बच्‍चे गाली नहीं देते, गाली देना बुरी बात है, इससे पाप लगता है।)
27. पाप क्‍या होता है? (प्रत्‍येक बुरे काम को पाप कहते हैं। जैसे झूठ बोलना, किसी को बिना कारण के मारना, गाली देना आदि। पाप करने वाले को ईश्वर दु:ख देता है।)
28. क्‍या चोरी करने से भी पाप लगता है? (बिना पूछे किसी की वस्‍तु उठाकर अपने काम में लाना ‘चोरी’ कहाती है। चोरी करना बहुत बड़ा पाप होता है।)
29. यदि कोई वस्‍तु पूछकर लेंगे तो? (जिस की वस्‍तु है उससे पूछकर लेना अच्‍छी बात है। इससे कोई पाप नहीं लगता। अच्‍छे बच्‍चे किसी की वस्‍तु हो बिना पूछे कभी हाथ नहीं लगाते हैं।)
30. क्‍या झूठ बोलना भी पाप होता है? (हाँ! झूठ बोलना सब से बड़ा पाप होता है, इससे भगवान् बहुत बड़ा दु:ख देते हैं।)
31. क्‍या आपस में लड़ने से भी पाप लगता है? (हाँ! हर बुरे काम करने से पाप अवश्‍य लगता है।)
32. जब दो मित्र लड़ते हैं तो हम को क्‍या करना चाहिये? (सच्‍चे मित्र आपस में नहीं लड़ते। यदि वे लड़ते हैं तो आप उनके दोनों के बीच में जाकर खड़े हो जाएँ और दोनों के हाथ पकड़कर मिलाएँ और मुस्‍करा कर कहें – ‘आप मित्र हैं,आपस में लड़ना बुरी बात है’!)
33. व्रत का मतलब क्‍या होता है? (व्रत के दो अर्थ होते हैं। 1. बुरी बात को छोड़ने की प्रतिज्ञा करना और 2. कुछ समय के लिये भूखे पेट रहना।
34. व्रत किसको रखना चाहिये? (रोगी को डॉक्‍टर की सलाह के अनुसार ही कम खाना चाहिये। भूखे पेट रहने से शरीर में कमज़ोरी आती है। जो डॉक्‍टर कहे वही खाना चाहिये। उसके अलावा सब मनुष्‍यों को बुरी आदतों को हमेशा के लिये छोड़ने का व्रत लेना चाहिये अर्थात् उन आदतों को उसी समय त्‍यागने की प्रतिज्ञा करनी चाहिये या शपथ लेनी चाहिये। व्रत लेना अच्‍छी बात है।
35. गुरुकुल में आठ साल के बच्‍चों को यज्ञोपवीत (जनेऊ) क्‍यों पहनाया जाता है?(क्‍योंकि आठ वर्ष के बच्‍चे सब बातें समझते हैं। गुरुकुल में जब गुरु जी वेद का पठन-पाठन शुरु करते हैं तो उस समय आठ वर्ष के बच्‍चों को यज्ञोपवीत धारण कराते हैं।
36. यज्ञोपवीत धारण करने से क्‍या होता है? (यज्ञोपवीत में तीन धागे होते हैं जो बच्‍चों को तीन गुरुओं की याद दिलाते रहते हैं – 1. माता-पिता, 2. आचार्य और 3. परमात्‍मा। इन तीनों गुरुओं से हमें ज्ञान मिलता है जिससे हम जीवन में सुखी रहते हैं।)
37. यज्ञोपवीत किस-किस रंग के होते हैं? (यज्ञोपवीत केवल सफ़ेद रंग का ही होता है।)
38. पण्डित जी किस को कहते हैं? (जो हमें यज्ञ कराता है, धर्म की शिक्षा देता है और वेदों की बातें बताता है – उस गुरु को ‘पण्डित जी’ कहते हैं।)
39. हम बच्‍चों में से कोई गोरा है और कोई काला। ऐसा क्‍यों? (हम अलग-अलग माता-पिता से उत्‍पन्‍न हुए हैं – इसलिये। गोरे या काले का निर्णय परमात्‍मा करता है। जब आप बड़े हो जाओगे तो समझ जाओगे।)
40. जब मनुय बड़ी उम्र का हो जाता है तो मरता है परन्‍तु छोटे बच्‍चे भी मरते हैं, ऐसा क्‍यों? (इस समय आप बहुत छोटे हो। जब आप पढ़-लिख कर बड़े होगे,विद्वान बनोगे तो इस रहस्‍य को समझ सकोगे। अब इतना ही समझो कि ईश्वर जो भी करता है, उसी में सब की भलाई होती है।)
41. रात्रि में सोने से पहले हमें क्‍या करना चाहिये? (रात्रि में सोने से पहले 1. हाथ-पैर और मुँह धोने चाहियें, 2. अपने बिस्‍तर पर बैठकर, दोनों हाथ जोड़कर, ईश्वर के नाम ‘ओ३म्’ का जाप करना चाहिये और सब को ‘नमस्‍ते’ बोलकर सोना चाहिये।)
42. सवेरे उठकर सब से पहला काम क्‍या करना चाहिये? (सवेरे उठकर सब से पहले हाथ जोड़कर प्रभु को प्रार्थना करनी चाहिये – ‘‘हे ईश्वर मैं आपका धन्‍यवाद करता/करती हूँ। मुझे सद्-बुद्धि प्रदान करो। आज का दिन हम सब के लिये शुभ और सुखदायी हो!”
43. क्‍या परमात्‍मा बच्‍चों की प्रार्थना सुनता है? (जी हाँ! सच्‍चे मन से करो तो परमात्‍मा सब लोगों की बात सुनता है।
44. बड़ों के पाँव छूने से क्‍या होता है? (बड़ों के पैर छूने से उनकी आशीर्वाद मिलती है, उनकी दुआएँ लगती हैं जिससे हमारा मन प्रसन्‍न होता है। जो व्‍यक्ति बड़ों की आशीर्वाद प्राप्‍त करता है, उसकी 1) आयु, 2) विद्या, 3) यश और 4) बल बढ़ता है।)
45. नमस्‍ते करने से क्‍या होता है? (‘नमस्‍ते’ करने से आपस में मित्रता और प्रेम बना रहता है।)
46. क्‍या नमस्‍ते सब को करनी चाहिये? (हाँ! सब को करनी चाहिये।)
47. नमस्‍ते का मतलब क्‍या होता है? (नमस्‍ते का अर्थ होता है – मैं आप को नमन करता / करती हूँ। आपका आदर करता / करती हूँ।)
48. क्या ईश्वर को भी नमस्‍ते कर सकते हैं? (सवेरे उठते ही सब से पहले अपने मन में ईश्वर को ही नमस्‍ते करनी चाहिये।)
49. ईश्वर की प्रार्थना आँखें खोलकर करनी चाहिये या बन्‍द करके करनी चाहिये?(छोटे बच्‍चों को दोनों आँखें बन्‍द करके उच्‍चारण करके करनी चाहिये। बड़े लोगों को मन में करनी चाहिये।)
50. ईश्वर को प्रार्थना में क्‍या कहना चाहिये? (हे ईश्वर! हम सब को अच्‍छी बुद्धि प्रदान कीजिये।)
51. प्रार्थना करने से क्‍या भगवान् ख़ुश होता है? (प्रार्थना करने से भगवान् ख़ुश नहीं होता, वह हम को ख़ुश रखता हैं।
52. परमात्‍मा को किस समय प्रार्थना करनी चाहिये? (कहीं भी, किसी भी समय, जब आप का मन करे, उसी समय करनी चाहिये।)
53. उपासना किसे कहते हैं? (उपासना अर्थात् पास में बैठना। ईश्वर के समीप बैठकर बातें करने को उपासना कहते हैं।
54. क्‍या ईश्वर से बातें कर सकते हैं? (हाँ, क्‍यों नहीं! ईश्वर से हम अपने मन की सब बातें कर सकते हैं।
55. क्‍या ईश्वर हमारी बातों का उत्तर देता है? (हाँ! आप बात करके देखिये, वह आप से बात करेगा और प्यार भी करेगा।
आओ बच्‍चो! अब हम मिलकर मन्‍त्र पाठ करेंगे और ईश्वर से प्रार्थना करेंगे। सब आप हाथ जोड़े, आँखें बन्‍द करें और एक स्‍वर में पाठ करें :
‘ओ३म्! असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्‍योतिर्गमय। मृत्‍योर्मा अमृतं गमय’॥
हे ईश्वर ! आप हमें असत्‍य से छुड़ाकर सत्‍य की ओर ले चलिये!
हे परमेश्वर ! आप हमें अज्ञानता से छुड़ाकर ज्ञान की ओर ले चलिये!
हे भगवान् ! आप हमें मृत्‍यु से छुड़ाकर अमृत की ओर ले चलिये!
ओ३म्! शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥


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