कर्मशील बने आलस्य को दूर करें और ज्ञान के प्रकाश को चहु ओर फैलाए
अपने आप को इतना सशक्त बनाये की शत्रु आदि पर हर समय विजय प्राप्त करें
नित्य यज्ञ करें और वेदों का अध्ययन करें
यजुर्वेद ५-३७(5-37)
अ॒यन्नो॑ऽअ॒ग्निर्वरि॑वस्कृणोत्व॒यम्मृधः॑ पु॒र ए॑तु प्रभि॒न्दन् । अ॒यँ वाजा॑ञ्जयतु॒ वाज॑साताव॒य शत्रू॑ञ्जयतु॒ जर्हृ॑षाणः॒ स्वाहा॑ ॥५-३७॥
भावार्थ:- जैसे परमेश्वर अपनी व्यापकता से कारण को प्राप्त हो सब जगत् के रचने और पालने से सब जीवों को सुख देता है, वैसे आनन्द में हम सबों को रहना उचित है। जैसे अग्नि काष्ठ आदि ईन्धन वा घृत आदि पदार्थों को प्राप्त हो प्रकाशमान होता है, वैसे हम लोगों को भी शत्रुओं को जीत प्रकाशित होना चाहिये, और जैसे होता आदि विद्वान् लोग धार्मिक यज्ञ करने वाले यजमान को पाकर अपने कामों को सिद्ध करते हैं, वैसे प्रजास्थ लोग धर्मात्मा सभापति को पाकर अपने-अपने सुखों को सिद्ध किया करें।।
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पण्डित लेखराम वैदिक मिशन
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