Monday, June 1, 2015

बेईमान मुसलमान और गद्दार ब्राह्मण- सन् ७१२ में हज्जाज ने मोहम्मद बिन कासिम को सिंध पर आक्रमण करने का...

बेईमान मुसलमान और गद्दार ब्राह्मण-
सन् ७१२ में हज्जाज ने मोहम्मद बिन कासिम को सिंध पर
आक्रमण करने का आदेश दिया। उस समय कासिम की
अवस्था केवल 20 वर्ष की थी। वह
ईरान और बलूचिस्तान होता हुआ ६,००० सैनिक और ३,००० ऊँटो
को लेकर सिंध पर चढ़ आया। जब राजा दाहिर को पता लगा तो उसने
अल्लाफियों के सरदार मोहम्मद वारिस को उस सेना को सिंध
की सीमा पर रोकने का आदेश दिया।
मोहम्मद वारिस ने कहा कि शत्रु को सीमा पर रोकने
की कोई आव्यशकता नही है, उसे
राजधानी तक आने दो, हम उनका काम तमाम कर देंगे।
जब सेना सिंध में घुस आई तो दाहिर ने मोहम्मद वारिस को फिर कहा
कि हमने तुम्हारी प्राण रक्षा की, तुम्हे
शरण दी और अपनी सेना में
भर्ती किया,अब तुम हमारी ओर से युद्ध
करो। इस पर उस नमकहराम, कृतघ्न वारिस ने कहा-“आपने
हमांरे साथ जो उपकार किया है, वह मैं जानता हूँ, परंतु चढ़ाई करने
वाले मुसलमान है और हमारा मजहब(मत) मुसलमान को मुसलमान
के साथ लड़ने की आज्ञा नही देता।”
यह कहकर ‘अल्लाहोकबर’ का नारा लगाता हुआ वह मोहम्मद
बिन कासिम की सेना में जा मिला, इसके अतिरिक्त सिंध के
जाट और मेवाड़ भी जो हिन्दुओ से असंतुष्ट थे,
मोहम्मद बिन कासिम की सेना में जा मिले।
इस सब शक्ति को प्राप्त कर कासिम ने सिंध के प्रसिद्द नगर देवल
पर आक्रमण किया। राजा दाहिर ने ३०,००० सैनिको सहित कासिम का
डटकर मुकाबला किया। घमासान युद्ध हुआ। रणक्षेत्र लाशो से पट
गया। शत्रु के छक्के छूट गए और घुटने टूट गए। कासिम का सहस
जवाब दे गया। वह पीठ दिखा और सर पर पैर रखकर
भागने वाला था कि एक देशद्रोही, नीच
ब्राह्मण कासिम से जा मिला। उसने कहा कि यदि आप
मेरी रक्षा करें और मुझे दक्षिणा दें तो मैं देवल
की पराजय और आपकी विजय का रहस्य
बता सकता हूँ। कासिम बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला-“बहुत
अच्छा, बताओ"। तब ब्राह्मण ने उसे बताया कि सामने मंदिर के
शिखर पर जो ध्वज लगा हुआ है उसे गिरा दिया जाये तो हिन्दुओ
की कमर टूट जायेगी, वे समझ लेंगे कि देवता
अप्रसन्न हो गए है और युद्ध करना बंद कर देंगे। कासिम ने
कहा-"वहा तो कड़ा पहरा है, चिड़िया भी वहाँ पर
नहीं मार सकती, ऐसी स्थिति
में झंडे को कैसे गिराया जा सकता है?” ब्राह्मण ने कहा-“यह
कार्य तो मैं कर दूंगा, मैं इस मंदिर का पुजारी हूँ। रात्रि में
इस ध्वज को मैं गिरा दूंगा।”
प्रातः काल जब दाहिर की रण के लिए उघत सेना को मंदिर
की चोटी पर झंडा दिखाई नहीं
दिया तो उनका उत्साह और सहस मंद हो गया। ब्राह्मण द्वारा
मचाया गया शोर से भी उन्होंने समझ लिया कि देवता
अप्रसन्न हो गए है, अब हमारी पराजय निश्चित
है। सेना निराश होकर भागने लगी, राजा दाहिर घायल
होकर गिर पड़ा,उसका सिर काटकर एक भाले पर टांग दिया गया।
हजारो स्त्री पुरुषो को मौत के घात उतारा गया। उस मंदिर
को तोड़कर उसके स्थान पर मस्जिद बनाई गई।
उसी नीच ब्राह्मण ने कासिम पास आकर
कहा-“ देखिये मैंने आपकी विजय कराई है। यदि आप
मुझे इच्छानुसार उत्तम भोजन कराये तो मैं आपको एक गुप्त खजाने
का पता भी बता सकता हूँ। कासिम ने उसे खूब भोजन
खिलाया। तब वह पुजारी उसे एक ऐसे तहखाने में ले
गया जहा राज्य का पूरा खजाना सुरक्षित था। उस तहखाने में ताँबे
की ४० देग रखी थी जिनमे
१७,२०० मन(१ मन=लगभग ३७.५ किलो) सोना भरा था। आज के सोने
के मूल्य २५,५०० प्रति तोले के हिसाब से लाखो ख़रब के रुपयो से
भी अधिक का होगा। ईन देगो के अतिरिक्त सोने
की बनी हुई ६,००० मूर्तियाँ
थी जिनमे सबसे बड़ी मूर्ति का वजन ३०
मन था। हीरा, पन्ना, माणिक और मोती तो
इतने थे कि उन्हें कई ऊँटो पर लादकर ले जाया गया।
ये है मूर्तिपूजा का अभिशाप। यदि हिन्दुओ का मूर्तियो में अंधविश्वास
ना होता तो भारत को ये दुर्दिन ना देखने पड़ते। मुसलमान तो
पैदाइशी बेईमान होते है लेकिन इन तथाकथित जन्मना
ब्राह्मणों ने इस देश की बर्बादी में सबसे
बड़ा किरदार निभाया है। या तो इन्हें सुधारना होगा या हिन्दुओ को
इनका बहिष्कार करना होगा।
महर्षि के शब्दों में-"मूर्तिपूजा सीढ़ी
नहीं किन्तु अंधकार की एक बहुत
बड़ी खाई है जिसमे गिरकर मनुष्य चकनाचूर हो जाता
है।”
~जन्मना ब्राह्मणों भूलो, मूर्तिपूजा को तुरंत छोड़ो, वेदों से नाता जोड़ो।


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