धर्म और विज्ञान अविरोधी हैं -
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“स्वामी दयानन्द का चिन्तन यथार्थता पर आधारित था । वे उन विचारकों तथा दार्शनिकों से सहमत नहीं थे जो मध्यकालीन अंधविश्वासों तथा बुद्धि विरुद्ध धारणाओं की आलंकारिक व्याख्या कर उन्हें येन केन प्रकारेण सत्य सिद्ध करने की चेष्टा करते थे । पुराणों में प्रस्तुत देवगाथावाद (Mythology) तथा अन्य प्रकार की मिथ्या उक्तियों को उन्होंने कल्पित युक्तियों और रहस्यमयता का आवरण चढ़ा कर प्रस्तुत किये जाने वाले हेत्वाभासों और मिथ्या शब्दजाल के द्वारा सत्य सिद्ध करने को कभी स्वीकार नहीं किया । वे विज्ञान और अंधविश्वास में छत्तीस का सम्बन्ध मानते थे । इसलिए उनको यही अभीष्ट था कि धर्म और विज्ञान की साथ साथ उन्नति हो । विज्ञान को धर्माचरण में बाधक नहीं माना जाये । दोनों को अन्योन्याश्रित मानकर हम अपनी सर्वांगीण उन्नति करें ।
स्वामी दयानन्द धर्म में पनपे पाखण्डों और अंधविश्वासों की आलंकारिक व्याख्या कर उन्हें औचित्यपूर्ण ठहराने के विरुद्ध थे । वे To call a spade a spade (काणे को काणा कहने) के पक्षपाती थे ।”
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