वेदों में वर्णित उपासना योग यज्ञ विद्या का प्रचार कौन करे?
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पथार्थ: स्वामी दयानंद जी
ऋ.1/3/7:-यौगिक भावार्थः- राजिंदर कुमार थुल्ला
जिस विद्वान् में अपने गुणों से संसार के जीवों की रक्षा -दया करने का भाव आ जाये। ब्रह्मविद्या रूपी परमात्मा की विद्या -ज्ञान से परिपूर्ण हो जाये, इस परमात्मा की विद्या का उपदेश करने में प्रीति होने लगे, आनंद आने लगे, उपासना योग यज्ञ का जो विज्ञानं है, उससे तृप्त रहे, यथार्थ निस्चय युक्त हो, शुभ गुणों का देने वाला हो, परमात्मा की विद्या को सुनाने वाला हो, परमेस्वर को जानने के लिए उपासना योग यज्ञ अभ्यास में पुरषार्थ करने वाला हो, और इस श्रेष्ठ विद्या के गुणों को प्राप्त करने की इच्छा से दुस्ट गुणों के नाश करने वाला हो; अत्यंत ज्ञानवान होकर उपासना योग यज्ञ अभ्यास में अपने सप्तमसार पथार्थ (वीर्य) रूपी घी को मस्तिस्क के आकाश में खीचने वाला हो; इस सत्य उपदेश से मनुष्यो के सुख को धारण करने और कराने वाला हो; अपने शुभ गुणों से सबको निर्भय करने वाला हो——- ऐसे सब विद्वान् सज्जन मनुष्यो के सामने (मूर्खो के सामने नही कहा) सप्तमसारपथार्थ (वीर्य)से चमकीले ऊर्जा कणों वाले सोम का विज्ञानं नित्य बतलावे की कैसे इस विज्ञानं से मस्तिस्क के आकाश में प्रकाश चमकना है; ये चमकीले सोम उतपन्न करने है। पहले स्वयं इस उपासना योग यज्ञ का अभ्यास करना है; फिर सज्जन पुरषो में इसका प्रचार करना है। _____राजिंदर कुमार थुल्ला
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