पौराणिक पण्डित कहते है की मूर्तिपूजा करनी चाहिए। जागरण करवाना चाहिए। प्रसाद चढ़ाकर मन्नत मागनी चाहिए।
ऐसी चिकनी चुपड़ी बातो को बोल कर पंडित पण्डे पुजारी लोगो को बेवकूफ उल्लू बनाते है और मूर्तिपूजा से अपना स्वार्थ सिद्ध करते है।
कहते है की अपने बड़ो की फोटो पर किचड़ या थूककर दिखाओ। तो जाने।
माता-पिता इत्यादि की फोटो का नाम लेकर उनको भरम में डालते है। परन्तु विद्वान् और ज्ञानी लोग इन मूर्खो की बातो में नही आते।
मन्दिर में जब लोग जाते है तो उनको ज्ञान कर्म धर्म की बाते न बताकर अपना प्रयोजन सिद्ध करते है और कहते है की १० रूपये यहा रखो ५० रूपये वहाँ रखो। ये फल, नारियल और मिठाई कपड़े हमे दो तुम्हारे कष्ठ दूर हो जायेगे। अब शीघ्र ही घर जाओ दुसरो को आने दो।
लोग पुरे दिन जितना धन मेहनत से कमाते है ये दुष्ट पण्डे-पुजारी रात को उसी धन से जागरण करवाते है।
धन तो गया ही इसके अलावा रात्रि भर जाग कर स्वास्थ्य भी चला जाता है।
ना ही ईश्वर की उपासना होती है, ना ही कुछ मिलता है सिर्फ अशान्ति के आलावा।
विद्वान पुरुष ईश्वर को अपने हृदय में देखते है ।
* अन्धन्तम: प्र विशन्ति येsसम्भूति मुपासते ।
ततो भूयsइव ते तमो यs उसम्भूत्या-रता: ।।
- ( यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 )
अर्थ – जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं , वह लोग घोर अंधकार ( दुख ) को प्राप्त होते हैं ।
* यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूंषि पश्यन्ति ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥ – केनोपनि० ॥ – सत्यार्थ प्र० २५४
अर्थात जो आंख से नहीं दीख पड़ता और जिस से सब आंखें देखती है , उसी को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर । और जो उस से भिन्न सूर्य , विद्युत और अग्नि आदि जड़ पदार्थ है उन की उपासना मत कर ॥
* अधमा प्रतिमा पूजा ।
अर्थात् – मूर्ति-पूजा सबसे निकृष्ट है ।
* यष्यात्म बुद्धि कुणपेत्रिधातुके
स्वधि … स: एव गोखर: ॥ - ( ब्रह्मवैवर्त्त )
अर्थात् – जो लोग धातु , पत्थर , मिट्टी आदि की मूर्तियों में परमात्मा को पाने का विश्वासय तथा जल वाले य को तीर्थ समझते हैं , वे सभी मनुष्यों में बैलों का चारा ढोने वाले गधे के समान हैं ।
* जो जन परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य की उपासना करता है वह विद्वानों की दृष्टि में पशु ही है ।
- ( शतपथ ब्राह्मण )
अभी भी समय है आखे खोलो। सत्यार्थ प्रकाश को पढ़कर बुद्धि को तोलो
बिना अष्टांगयोग के परमात्मा की भक्ति ना होगी। बिना योग के मुक्ति ना होगी।
🌾🌾विकास आर्य🌾🌾
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