११ आषाढ़ 25 जून 15
😶 “ देवत्त्व की ओर ” 🌞
🔥🔥ओ३म् ईजानशिचतमारूक्षदग्रिं नाकस्य पृष्ठद् दिवमुत्पतिष्यन् ।🔥🔥
🍃🍂 तस्मै प्रभाति नभसो ज्योतिषीमान् स्वर्ग पन्था सुकृते देवयान:।। 🍂🍃
अथर्व० १८ । ४। १४
शब्दार्थ :- जो मनुष्य सुखभोग के लोक से प्रकाशमय “द्यौ” लोक के प्रति ऊपर उठना चाहता हुआ ओर इस प्रयोजन से वास्तविक यजन करता हुआ पुण्यकर्मो द्वारा चिनी हुई अग्रि का,आंतर अग्रि का आश्रय ग्रहण करता है उसी शोभन कर्म करने वाले मनुष्य के लिए ज्योतिर्मय आत्मसुख को प्राप्त करने वाला ‘देवयान’ मार्ग इस प्रकाश रहित संसार-आकाश के बीच में प्रकाशित हो जाता है ।
विनय :- क्या तुम देवत्व पाना चाहते हो?
उस प्रसिद्ध बड़ी महिमावाले 'देवयान’ मार्ग के पथिक बनना चाहते हो?
परन्तु शायद तुम उस देवों के चलने के मार्ग अभी समझ ही ना सकोगे । बात यह है कि संसार में दो मार्ग चल रहे है । एक मार्ग संसार के लोगो में भोग में, प्रकृति में,प्रवृत हो रहें है-विश्व के एक-से-एक ऊँचे सुख भोग पाने के लिए दृढ़तापूर्वक अग्रसर हो रहे है ।
दुसरे मार्ग वाले लोग भोगों से निवृत होकर अपवर्ग की और आत्मा को और जा रहे है । ये क्रमश: पितृयान और देवयान है । इन दोनों मार्गों द्वारा प्रकृति मनुष्य के भोग और अपवर्ग नामक दोनों अर्थों को पूरा कर रही है,परन्तु प्रवृति और निवृति एक साथ कैसे हो सकती है?
इसलिए जो लोग भोगों में विश्वास रखतें हुए मुँह उधर उठायें जा रहे है,उन्हें लाख समझाने पर भी वो आत्मा की बात ना सुनेंगे ।
देवयान मार्ग तो उन्हें ही भासता है जो लोगो कि नि:सारता को अच्छी प्रकार समझ गये है,परम लुभावने बड़े-बड़े भोगों को दिव्य भोगो को देखकर जो उनसे भी विरक्त हो चुके हो वे अब बड़े सुखों को इन्द्रासन को छोड़ कर ज्ञानरूप तत्व की क्षरण में जाने को व्याकुल हो भोगों में अन्धकार-ही-अन्धकार पाकर जो ज्योतिर्मय की तरफ बढना चाहते है । यही मार्ग स्वयं को आत्मा-सुख को,आत्म ज्योति को प्राप्त करने वाला है ।
अनन्त सूर्य के प्रकाश को भी मात करनेवाली ज्योति की भांति वह देवयान दिव्य प्रकाश तुम्हारी ओर उतरोत्तर बढता जाएगा ।
और तब भोग्वादियों के लाख समझाने पर भी तुम्हें इन ज्योतिर्म्य भोगों में राग पैदा नहीं होगा ।
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
from Tumblr http://ift.tt/1HvGXX0
via IFTTT
No comments:
Post a Comment