२५ आश्विन 11 अक्टूबर 2015
😶 “लक्ष्मी का ग्रहण ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् एता एना व्याकरं खिले गा विष्ठिताइव । 🔥🔥
🍃🍂 रमन्तां पुण्या लक्ष्मीर्या: पापीस्ता अनीनशम् ।। 🍂🍃
अथर्व० ७ । ११५ । ४
ऋषि:- अथर्वाग्ङिरा: ।। देवता- सविता: ।। छन्द:- अनुष्टुप्।।
शब्दार्थ- इन उन (अपने घर या जीवन में रखी हुई सैंकड़ों प्रकार की) लक्ष्मियों का मैं विवेकपूर्ण पृथक्करण करता हूँ जैसे व्रज में विविध प्रकार की आ बैठी हुई गौओं का गोपाल पृथक्करण किया करता है। अब जो पुण्या लक्ष्मी हैं, पुण्य कमाई के ऐष्वर्य हैं वे मेरे यहाँ रमण करें, आनन्द से रहें, पर जो पाप-कमाई की लक्ष्मी हैं उन्हें मैं आज विनष्ट किये देता हूँ।
विनय:- हमारे घर में सैंकड़ों प्रकार की लक्ष्मी का वास है । लेकिन आज मै परम पिता की शरण में हूँ मै उन लक्ष्मियों को पृथक पृथक करता हूँ जो लक्ष्मी मेरे यहाँ पुन्य कर्म मेरे अच्छे कर्मों से आई है मेरी पुन्य कमाई से पुण्य ऐश्वर्य की मालिक है वो मेरे यहाँ आराम से रहे लेकिन जो मैंने पाप कर्मों से बनाई है जिसमें मैंने कईयों का दिल दुखया है वो लक्ष्मी अब मै अपने पास नहीं रखुगा आज मै उस लक्ष्मी को विनिष्ट किये देता हूँ
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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