Monday, October 12, 2015

[12:06pm, 12/10/2015] भूपेश सिंह आर्य: अवतारवाद- प्रश्न१.गीता अध्याय ४ श्लोक ८ में लिखा है कि-अवतार...

[12:06pm, 12/10/2015] भूपेश सिंह आर्य: अवतारवाद-
प्रश्न१.गीता अध्याय ४ श्लोक ८ में लिखा है कि-अवतार तीन काम करने के लिए होते हैं-
(1) सज्जनों की रक्षा।
(2) दुष्टों का विनाश।
(3) धर्म की स्थापना।
इसका अर्थ स्पष्टतया यह हुआ कि कोन व्यक्ति अवतार है कोन नहीं?
यह जांचने की कसोटी
गीता में पेश की गयी है
कि। जो व्यक्ति इन तीन
कर्मों को करे वह अवतार होगा और जो इन तीन
कर्तव्यों का पालन न करे
वह मनुष्य होगा। यह तीन
ही कर्म अवतारों के प्रधान
कार्य होते हैं।जिनके लिए
वे अवतरित होते हैं।
तब सप्रमाण बतायें कि सनातन धर्म के अन्य चौबि स अवतारों में से अब तक किस किस अवतार ने उपरोक्त तीनों कर्तव्यों
का पालन करके दिखाया है? पौराणिक साहित्य से
तो एसा सिद्ध है कि अभी
तक तो एक भी अवतार माने जाने वाले व्यक्ति ने
गीता की इन तीन शर्तों को
पूरा किया है।इसलिए उनमें
से एक भी अवतार नहीं माना जा सकता है।
प्रश्न२. ईश्वर का कार्यक्षेत्र सारा भूमण्डल व सारा विश्व होता है।उसके सारे कार्य संसार भर के हित के लिए होते हैं।तब सनातन धर्म के माने हुए २४अवतारों का कार्य क्षेत्र केवल भारतवर्ष और उसमें
से भी कुछ थोडा सा क्षेत्र
क्यों रहा? जबकि मनुष्यों
की आबादी तो सारी प्रथ्वी
पर थी।
प्रश्न३.विष्णु ने देवी भागवत
पुराण के स्कन्द४,अध्याय १८ में स्वयं स्वीकार किया
है कि मैंने रामावतार में महान दु:ख उठाये थे।
पराधीन होने से ही मुझे
राम का अवतार लेना पडा
था।ये बात राम की लोक
कल्याण भावना से स्वेच्छ्या
ईश्वरावतार लेना सिद्ध नहीं
करती हैं।
प्रश्न४.देवी भागवत पुराण के स्कन्द१ अध्याय ४ श्लोक ४६ से ६१ तक तथा
स्कन्द ५ अध्याय १ श्लोक
४७ से ५० तक के अन्दर
स्पस्ट शब्दों में घोषणा की
गयी है कि विष्णु का कोई
अवतार स्वेच्छा से लोक कल्याण के लिए नहीं होता
है तथा स्वेच्छा से अवतार माननें वालों को मूर्ख बतलाया है।तब क्या सनातनी विद्वान्,देवी भागवत को झूठा ग्रन्थ
मानते हैं?
प्रश्न५.गीता की कसोटी पर
श्रीक्रष्ण जी भी अवतार सिद्ध नहीं होते हैं क्योंकि
उनके कार्य भी पारिवारिक
शत्रुता का बदला कंस से लेना और कौरव पाण्डवों
से सम्पत्ति के बटवारे में हुए
घरेलु झगडों में अपने भाई
अर्जुन कि मदद करना मात्र था।उनका उद्देश्य भी लोक कल्याण नहीं था और
न गीता की बताई गयी कसोटी को पूरा करना था।
क्रष्ण का कार्य तो अपने
परिवार व रिश्तेदारों का कल्याण करना मात्र था।
अत: गीता की कसोटी पर
श्रीक्रष्ण को अवतार सिद्ध
करें।
प्रश्न६.श्रीक्रष्ण ने पौराणिक
मान्यतानुसार गीता में अर्जुन से कहा है कि-
“ हे अर्जुन! युद्ध क्षेत्र में तेरे
सभी शत्रु काल द्वारा मारे
जा चुके है तू इन मरे हुए लोगों को मारकर निमित्त
मात्र बनकर यश प्राप्त कर
ले।जो जन्मा है उसकी म्रत्यु तो अनिवार्य होनी ही है"।
(गीता अध्याय ११ श्लोक ३२ व ३३)
इससे सिद्ध है कि कोई भी प्राणी अपनी निश्चित आयु
के समाप्त होने पर ही म्रत्यु को प्राप्त होता है उससे पूर्व
नहीं।राम रावण,क्रष्ण कंस
आदि सभी अपने निश्चित
आयु के समाप्त होने तक
ही जीवित रहे थे।
उसकी समाप्ति पर राम ने
सरयु नदी में डूबकर,रावण ने युद्ध में मरकर,क्रष्ण के पैर में बहेलिया ने बाण मारकर सभी ने अपनी पूर्ण
आयु भोगकर म्रत्यु प्राप्त की थी।अब भी रोजाना
लाखों जीव आयु की समाप्ति पर मरते हैं।तब ईश्वरावतार की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है।क्योंकि समय से
पूर्व कोई किसी को नहीं
मार सकता है यह गीता
का सिद्धान्त है।तब ईश्वरावतार को दुष्टों के नाशार्थ आवश्यकता सिद्ध करें?
प्रश्न७.बतावें कि राम व क्रष्ण आदि किसी भी अवतार ने ऐसा कौन सा
कार्य किया जो मनुष्य नहीं
कर सकता था।जिसके लिए उन्हें ईश्वरावतार माना जा सके?
प्रश्न८.महाभारत सभा पर्व
अध्याय१४ श्लोक ६७ में
श्रीक्रष्ण जी ने कहा है कि,
हम जरासन्ध के भय के मारे मथुरा छोडकर द्वारिका को भाग गये थे।
क्या प्रबल शत्रु से डरकर
भाग जाना क्रष्ण के ईश्वरत्व का खुला उपहास नहीं है?
प्रश्न९.श्रीक्रष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ
होना क्या श्रीक्रष्ण को ‘योगेश्वर’ के स्थान पर
भोगेश्वर सिद्ध नहीं करता?
क्या अधिक विषयी होना भी सनातन धर्म में योगी
होने की पहचान है?
प्रश्न१०. नरसिंह अवतार का वध करने और उसका
सर काटने व उसकी देह की खाल उतारने की घटना
-लिंग पुराण पूर्वार्ध अध्याय ९६, में दी गयी है,तो जिसकी इस प्रकार दुर्गति हो तब वह ईश्वरावतार कैसे माना जा
सकता है?
प्रश्न११.मत्स्य,कूर्म,वाराह,
न्रसिंह,हयग्रीव आदि अवतार रुपी पशुओं व जीवों को ईश्वरावतार कैसे माना जा सकता है? जबकि इन्होने सज्जनों की
रक्षा तथा दुष्टों का विनाश
व धर्म का प्रचार कभी नहीं किया था तथा ये जीव जन्तु बिल्कुल बे पढे लिखे
व मूक एवं मूर्ख अर्थात नारे पशु थे।
प्रश्न१२.भागवत पुराण स्कन्ध १३,अध्याय ३१, श्लोक २ में ज्वाला प्रसाद की टीका बम्
[12:09pm, 12/10/2015] भूपेश सिंह आर्य: प्रश्न१२.भागवत पुराण स्कन्ध १३,अध्याय ३१, श्लोक २ में ज्वाला प्रसाद की टीका बम्बई छापा में
गोपियों ने श्रीक्रष्ण को
सम्भोग का पति बताया है
श्रीक्रष्ण जी को भागवत कार ने सम्भोग का पति बताकर उनके ईश्वरत्व में
कौन से चार चाँद लगाये हैं
यह बतावें?
प्रश्न१४. सती तुलसी व सती व्रन्दा के साथ उनके
पतियों का रुप बनाकर उनको धोखा देकर व्यभिचार करने पर उन
सतियों के श्रापों के कारण
विष्णु जी को दण्ड भुगतने के लिए अवतार लेने पडे थे।यह विवरण शिवपुराण में दिये गये हैं।तब लोक कल्याण के लिए विष्णु के स्वेच्छा से अवतार लेने की बात स्वयं गलत हो जाती है
क्या सनातनी विष्णु उपरोक्त घटनाओं से परनारी लम्पट सिद्ध नहीं
होता है?
प्रश्न१५.भागवत पुराण के स्कन्ध ८,श्लोक २४ में लिखा है कि- मत्स्यावतार के शरीर की लम्बाई एक लाख योजन अर्थात आठ लाख मील थी।तो हिसाब लगाकर बतायें कि हमारी
प्रथ्वी पर वह कहां और किस प्रकार रहता होगा?
जबकि प्रथ्वी की परिधि तो
केवल २४ हजार मील ही है।
प्रश्न१६.सनातन धर्म के मान्य २४ अवतारों की सूची पेश करें और बतावें कि भागवत पुराण स्कन्द
१ व ३ में जो अधूरी सूचियां अवतारों की दी
गयी हैं उनमें परस्पर विरोध क्यों है? क्या व्यास
अवतार को २४ अवतारों
के नाम भी ठीक ठीक याद
नहीं थे?
प्रश्न१७.जब अवतारों का उद्देश्य ही अत्याचारों व
पापों का विनाश एवं धर्म
की स्थापना होती है तो तब
जिन युगों में धर्म अधिक
होता है तब अधिक अवतार क्यों होते है?
तथा जब कलयुग में
तीन चरण अधर्म के होते
हैं, तब केवल एक ही अवतार क्यों होता है,
जबकि सबसे अधिक अवतार कलयुग में होने
चाहिए।
प्रश्न१८.पदमपुराण पाताल खण्ड अध्याय ७५ में लिखा है कि श्रीक्रष्ण जी ने नारद
को नारदी अर्थात औरत
बनाकर उसके साथ रमण
किया।तो क्या अवतार का
अवतार के साथ ऐसा कुकर्म करना ठेठ सनातन
धर्म एवं अवतारपन का
सबूत है?
प्रश्न२०.महाभारत उद्दोग पर्व अध्याय ४९ में लिखा
है कि नर और नारायण नाम के दो ऋषि गन्धमादन
पर्वत पर तपस्या किया करते थे।जब कहीं युद्ध के
अवसर आते थे,तो ये दोनों
ही ऋषि वहां अवतार लेकर
युद्ध किया करते थे।अर्जुन
और क्रष्ण दोनों इन्ही नर व
नारायण ऋषियों के अवतार थे।इस प्रमाण में
स्पष्ट है कि श्रीक्रष्ण ईश्वरावतार न होकर नारायण नाम के किसी
ऋषि के अवतार थे अर्थात
उक्त ऋषि ने युद्ध करने को
क्रष्ण का जन्म लिया था
अब पौराणिक विद्वान बतावें कि महाभारत में
उनके अवतार व्यास जी ने
उपरोक्त बात लिखकर ईश्वर के क्रष्णावतार लेने
का खण्डन क्यों किया है?
प्रश्न२१.राम के काल में राम व परशुराम दोनों
अवतार एक ही समय में
हुए व दोनों आपस में लड
पडे। एक दूसरे को पहचान भी न सके।क्या यह अवतारवाद का मजाक नहीं है?
[12:10pm, 12/10/2015] भूपेश सिंह आर्य: प्रश्न२२.महाभारत काल में
व्यास जी,क्रष्ण व बलराम जी तीन अवतार क्यों एक साथ पैदा हो गये? एक ही
अवतार से सारा काम क्यों नहीं पूरा कराया गया?
क्या अवतार भी घटिया व
बढिया किस्म के होते हैं?
साथ ही यह भी बतावें कि
एक विष्णु के एक साथ तीन
अवतार कैसे बन गये?
प्रश्न२३.पौराणिकों के सारे अवतार उत्तरप्रदेश में ही क्यों पैदा हुए?भारत के अन्य भागों में व प्रथ्वी के अन्य देशों में क्यों नहीं पैदा
हुए?
प्रश्न२४.सारे अवतार क्षत्रिय वंश में ही क्यों पैदा हुए?
अन्य जातियों में क्यों नहीं
जन्में? केवल एक अवतार
परशुराम जो ब्राह्मणों में
पैदा हुए सो उनको भी रामावतार अर्थात ठाकुर
अवतार ने परास्त करके
निस्तेज कर दिया।उसे
कोई पूछता भी नहीं है?
प्रश्न२४.संसार की सभी चीजें बदलती रहती हैं
और इनके बदलने का मुख्य कारण ईश्वर ही होता है।परन्तु ईश्वर बदलने वाली वस्तु नहीं है। यदि
ईश्वर भी बदला करे(अर्थात
निराकार से साकार) तो
ईश्वर में निर्बलता आ जाये।
बदलने वाली सभी चीजें
निर्बल होती हैं।अगर ईश्वर के गुण बदला करें तो वह
ईश्वर न रहे और संसार का कार्य कैसे चले?यदि ईश्वर
निराकार से साकार हो जाये तो उसमें स्थूलता आ जाये।स्थूलता आते ही उसकी सर्वव्यापकता नष्ट
हो जाये क्योंकि यह सूक्ष्म
वस्तुओं में व्यापक न रह सके।व्यापक न रहने से
ज्ञान भी नष्ट हो जाये।
इसलिये ईश्वर कभी नहीं
बदलता।
भला मैं आपसे पूछता हूं
कि ईश्वर के बदलने का कारण ईश्वर स्वयं है या
अन्य कोई? यदि ईश्वर स्वयं
अपने बदलने का कारण है
तो उसमें दोष,त्रुटि या अपूर्णता होगी।पूर्ण चीज कभी न बदलेगी।जो पूर्ण है
वह तो पूर्ण ही है।उसमें क्या तबदीली हो सकती
है?क्या वह पूर्ण से अपूर्ण होगी?कदापि नहीं।
फिर क्या ईश्वर के बदलने का कारण ईश्वर से बाहर
किसी ओर चीज में है?नहीं!क्योकि एक चीज को वही चीज बदल सकती
है जो उससे अधिक बलवान हो।ईश्वर से बलवान कोई नहीं।इसलिए
उसको कोई चीज नहीं
बदल सकती।फिर ईश्वरावतार का सवाल ही
नहीं उठता।
प्रश्न२६.हम ऊपर पढ चुके हैं कि ईश्वर रुप नहीं बदलता।इसलिए अवतार
भी नहीं ले सकता।ईश्वर के तीनों काम-बनाना,स्थिर रखना ओर बिगाडना,उसके बिना रुप
बदले ही चल सकते हैं और
चल रहे हैं।इसलिए ईश्वर को जन्म लेने की जरुरत नहीं।कुछ लोग कहते हैं कि
दुष्टों को मारने और सज्जनों को सुख देने के लिए ईश्वर अवतार लेता
है।उनसे पूछो क्या वह
इतना शक्तिवान नहीं की
जो बिना जन्म लिये दुष्टों
को मार सके।
कंस और रावण को मारना
क्या सूर्य,चाँद आदि के बनाने से भी कठिन था?
कंस और रावण को बनाया
किसने था?क्या ईश्वर ने उनको नहीं बनाया था?
जब उनको बनाने के लिए अवतार की जरुरत नहीं
पडी तो मारने के लिए क्यों
पडेगी?
जबकि मारना बनाने से सुगम है।आपने पेंटिंग बनाई,महिनों लग गये
ओर बिगाडने में,पेन्सिल
से बिगाड दी,कुछ भी देरी
नहीं लगी।
फिर यह तो कहो कि आजकल ईश्वर दुष्टों को
मारता नहीं? यदि ऐसा होता तो आज सब दुष्ट
अमर हो जाते।
प्रश्न२७.कुछ लोग कहते है कि ईश्वर भक्तों के हाथ में
है।भक्त जिस रुप में उसके
दर्शन करना चाहते हैं ईश्वर उसी रुप में उनको दर्शन
देता है।यह बडी भारी भूल
है।ईश्वर के नियम के अनुकूल चलना ही सच्ची
भक्ति है।ईश्वर को नाच नचाने की इच्छा भक्ति नहीं।सेवक वह है जो
मालिक के अनुकूल चले,
न कि वह जो मालिक को
अपने अनुकूल चलाना चाहे।इसलिये ईश्वर को
अवतार लेने की अथवा
रुप बदलने की कभी जरुरत नहीं पडती।
प्रश्न२८.यह कहना कि ईश्वर अवतार ले सकता है,उसका
अपमान करना है।ईश्वर कौशल्या या देवकी के गर्भ
से पहले मौजूद था,क्योकि
वह सर्वव्यापक है और हमेशा ही व्यापक रहा।
फिर यह कहना कि गर्भ में
आया,गर्भ से बाहर आया
आदि सब भ्रम में डालने की बातें हैं।
प्रश्न२९.जब ईश्वर राम और क्रष्ण का शरीर धारण किये हुए थे तो उन शरीरों से बाहर अन्य स्थानों पर कौन
बनाता-बिगाडता होगा?
प्रश्न३०.राम व क्रष्ण आदि महापुरुष अवश्य थे।उनमें
असाधारण चातुर्य व अद्भुत
शक्ति थी।परन्तु उनमें कोई
ऐसी बात नहीं मिलती जो
उनको ईश्वर सिद्ध कर सके।
योगदर्शन में कहा है-
क्लेश कर्म विपाकाशयैरपराभ्रष्ट: पुरुष विषेश ईश्वर:।
अर्थात् ईश्वर में क्लेश और
कर्मों का फल भोगना नहीं
पाया जाता।
राम और क्रष्ण के जीवन में
उत्तम मनुष्यों की बातें तो
पायी जाती हैं जैसे धर्मभाव,वीरता आदि।
परन्तु उन्होंने एक चींटी को भी कभी नहीं बनाया।न कोई दूसरी स्रष्टि रची।
अन्य पुरुषों की भांति वह
भी भोजन करते थे,पानी
पीते थे,सोते थे,पढते थे,विवाह किया,युद्ध में
शस्त्र चलाते थे।
यह सब चिन्ह मनुष्यों के हैं
ईश्वर के नहीं।उन्होंने सीता के हरे जाने पर विलाप किया।
उनमें कौन सी बात ईश्वर होने की है?
प्रश्न३१.कुछ लोग कहते हैं कि वह थे तो ईश्वर ,परन्तु मनुष्य लीला करते थे।यह भी भूल है।क्या ईश्वर मनुष्य लीला करने के लिए
अव
[12:12pm, 12/10/2015] भूपेश सिंह आर्य: प्रश्न३१.कुछ लोग कहते हैं कि वह थे तो ईश्वर ,परन्तु मनुष्य लीला करते थे।यह भी भूल है।क्या ईश्वर मनुष्य लीला करने के लिए
अवतार लेता है? मनुष्य लीला करने के लिए तो
मनुष्य मौजूद ही हैं।
संसार के सभी मनुष्य लीला किया करते हैं और जब तुम्ही अपने मुँह से कहते हो कि वह मनुष्य लीला करते थे तो तुम मानते हो कि उनमें मनुष्य से बढकर ईश्वर के कोई गुण नहीं पाये जाते थे।
फिर वह ईश्वर कैसे हुए?
३३.अवतार मानने से मानव जीवन पर प्रभाव-
राम क्रष्ण आदि को ईश्वर
मानने से हिन्दू जाति के आचार व्यवहार पर बुरा प्रभाव पडा है।प्रथम तो
वह ईश्वर की उपासना न करके मूर्तिपूजक हो गये
हैं।केवल राम-राम,सीता-राम,राधाक्रष्ण जपने को ही ईश्वर पूजा समझते हैं।
दूसरे वह राम और क्रष्ण के जीवन का अनुकरण नहीं करते।
वह समझते हैं कि राम क्रष्ण तो ईश्वर थे,उनके जैसे आचरण हम साधारण मनुष्य नहीं कर सकते।
यही कारण है कि हिन्दू जाता पतन की और गिरती जाती है।
हिन्दुओं में इतनी निर्बलता आ गयी है का वह अपने दु:खों को दूर करने का उपाय न करके ईश्वर अवतार का इंतजार करते
हैं।वह यह समझते हैं कि जब ईश्वर अवतार लेगा तो हमारे कष्टों को दूर करेगा।
उनको यह विश्वास नहीं हो रहा कि अब भी यदि वह परिश्रम करें तो ईश्वर उनकी सहायता कर सकता है।


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