२७ आश्विन 13 अक्टूबर 2015
😶 “परम सत्य की प्राप्ति के लिए ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् कथं वातो नेलयति कथं न रमते मन:। 🔥🔥
🍃🍂 किमाप: सत्यं प्रेप्सन्तीर्नेलयन्ति कदा चन ।। 🍂🍃
अथर्व० १० । ७ । ३७
ऋषि:- अथर्वा: ।। देवता- स्कम्भ आत्मा वा ।। छन्द:-अनुष्टुप् ।।
शब्दार्थ- वायु, प्राण क्यों नहीं ठहरता? मन क्यों नहीं रमता? क्या सत्यस्वरूप को प्राप्त करना चाहती हुई ही प्रजाएँ, जीव, जीवों के कर्मप्रवाह कभी भी नहीं ठहरते हैं, सदा चल रहे हैं?
विनय:- यह वायु क्यों सदा गति कर रहा है? कहीं ठहर क्यों नहीं जाता? यह मन क्यों कहीं रत नहीं हो जाता? क्यों किसी आनन्द को पाकर ठहर नहीं जाता? ये नदियाँ, ये प्रजाएँ, ये जीव, जीवों के कर्मप्रवाह क्यों कभी नहीं ठहरते? क्यों सदा चल रहे हैं?
ये सब किसे प्राप्त करना चाहते हुए चलते चले जा रहे हैं? यह वायु, यह प्राण कहाँ पहुँचने के लिए सदा चल रहा है? यह मन किस प्यारे को पाना चाहता हुआ और उसे कहीं न पाता हुआ प्रतिक्षण चंचल है? ये सब प्रजाएँ, ये सब प्राणी दिन-रात कुछ-न-कुछ करते हुए किसे प्राप्त करना चाहते हैं?
क्या ये सब सत्य को ही पाना चाहते हुए नहीं चल रहे हैं? ओह! सचमुच, उस परम सत्य को पाने के लिए ही प्राण निरन्तर चल रहे है, मन सदा भटक रहा है और सब प्राणियों का प्रतिक्षण का कर्मप्रवाह चल रहा है और निःसन्देह कभी, किसी काल में उस परम प्यारे ‘सत्य’ को पा लेने पर ही यह हमारा प्राण चैन पाएगा, मन निरुद्ध हो जाएगा, हमारी सब-की-सब चेष्टाएँ सर्वथा बन्द हो जाएँगी और हम उस प्रेप्सित परम आनन्द में समाधिस्थ हो जाएँगी, पर उसे बिना पाये कहीं विश्राम नहीं है, हे भाइयो! कहीं विश्राम नहीं है।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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