एक गांधीवादी नेता का राजघाट की पूजा से इंकार!
प्रस्तुति: मधु धामा (फरहाना ताज)
‘तो कल का हमारा कार्यक्रम क्या है?’
‘साहब गांधी जयंती पर सुबह सवेरे बापू को श्रद्धांजलि देने
जाना है और फिर सर्वधर्म सभा में भाग लेना है और फिर…’
‘ठहरो…हम गांधी जयंती पर उनकी समाधि पर फूल नहीं
चढाएंगे।’
‘क्यों साहब आप तो पक्के गांधीवादी हैं।’
‘हां मैं गांधीवादी हूं, लेकिन सबसे पहले मैं वैदिक धर्मी हूं,
आर्य समाजी हूं…किसी बुत की पूजा नहीं कर
सकता…वैदिक धर्म में मरने के बाद आदमी या तो पुनर्जन्म ले
लेता है या फिर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, इसलिए
किसी भी आदमी के बुत को पूजना अधर्म है…मैं गांधी की
समाधि पर फूल चढाकर अपने धर्म को नहीं छोड सकता।’
‘मगर…’
‘अगर मगर कुछ नहीं, आप ही देखिए गांधी जी को जलाया
गया था, उसकी भस्म भारतभर की नदियों में डाल दी गई,
फिर उस स्थान पर ईट और पत्थर की पूजा की परम्परा क्या
सही है?’
केवल 16 महीने भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले उस
आदमी का यह जवाब था, जो कभी पीएम बनने के दौरान
संसद में भी नहीं गया…अब बयान सही था या गलत….लेकिन
उन्होंने अपने संस्मरण में इसे लिखा है। वे इनसान थे किसान
नेता चौधरी चरण सिंह! चरण सिंह चंद दिनों के लिए
प्रधानमंत्री रहे, लेकिन कम लोग जानते हैं कि उन्होंने केवल
फाइलों में हस्ताक्षर करके ऐसा कानून देशभर में लागू कर
दिया था कि जो शिक्षण संस्थान किसी जाति के नाम
पर होंगे उन्हें सरकारी सब्सिडी नहीं मिलेगी। परिणाम यह
हुआ कि सात कालेज तो जाट कालेज के नाम के थे, उन्हें भी
नया नया जनता वैदिक कालेज दिया गया, उदाहरण बडौत
का जाट कालेज जो अब जनता वैदिक है…इत्यादि…
हवन करते चरणसिंह का असली चित forward by आरय कानतिलाल भुज गुजरात
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