Tuesday, October 6, 2015

आश्विन कृष्ण ९ वि .सं. २०७२ ६ अक्टूबर २०१५ 😶 “ ईर्ष्या-नाश ! ” 🌞 🔥🔥ओ३म्...

आश्विन कृष्ण ९ वि .सं. २०७२ ६ अक्टूबर २०१५

😶 “ ईर्ष्या-नाश ! ” 🌞

🔥🔥ओ३म् ईर्ष्याया ध्राजिं प्रथमां प्रथमस्या उतापराम्। 🔥🔥
🍃🍂 अग्रिं ह्द्य्य९शोकं तं ते निर्वीपयामसि ।। 🍂🍃

अथर्व० ६ । १८ । १

ऋषि:- अथर्वा: ।। देवता- ईर्ष्याविनाशनम्: ।। छन्द:-अनुष्टुप् ।।

शब्दार्थ- ईर्ष्या की पहली ही वेगवती गति को,ज्वाला को हम बुझाते है और इस पहली से अगली ज्वाला को भी बुझाते है,इस तरह
हे मनुष्यों ! तेरी उस ईर्ष्यारुपी ह्दय में जलनेवाली अग्रि को तथा उसके शोक-संताप को बिलकुल शांत कर देते है ।

विनय:- बड़ा आश्चर्य है कि मनुष्य दुसरे की बढती को सह नहीं सकता । बजाए इसके कि वह अपने साथी की बढती हुई को प्रसत्र हो,प्रेमयुक्त हो,वह उसके प्रति ईर्ष्यालु हो जाता है । यह ईर्ष्या बड़ी बुरी प्रवृति है । जब किसी मनुष्य के ह्दय में ईर्ष्या की अग्रि जल उठती है तब यह उसे बुरी तरह सन्तप्त करती है । इतना ही नहीं ईर्ष्या की अग्रि के बढ़ जाने से कईं संग्राम छिड चुके है जिसमें हजारों लाखों लोग व्यर्थ तबाह हो जाते है इसलिए ईर्ष्याअग्रि को बढने नहीं देना चाहिए । जब ईर्ष्या अग्रि की पहली ज्वाला बढ़े उसे उसी समय बुझा देना चाहिए ।
पर इतने से भी निश्चिन्त नहीं हो जाना चाहिए,क्यूंकि आग बुझ-बुझकर फिर जलने लगती है । असावधानी से अगर ईर्ष्याअग्रि फिर से जलने लगे तो फिर से अच्छे विचार और भावना की जलधारा से शांत कर देना चाहिए । यह निश्चित है कि उसका दूसरा वेग मंद होगा । इसी तरह आगे भी करते रहना चाहिए जब तक ईर्ष्या अग्रि और शोक संताप बिलकुल नक्क बुझ जाए और इनकी जगह प्रेम की शीतलता और आत्मैक्य की जल धारा ना बहने लगे ।
हे ईर्ष्यासन्तप्त पुरुष !
हम तेरी ईर्ष्या अग्रि को प्रेमधारा द्वारा सर्वथा बुझा देते है ।


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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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