अक्ल के अंधे"🌿
किसी गाँव में आँख के अंधे पति पत्नी रहते थे। पति दिन भर भीख माँग कर लाता और शाम को खाने का गुजारा होता। इसी प्रकार काफी समय गुजर गया। जब पत्नी शाम को खाना बनाती तो एक बिल्ली रोटियां लेकर भाग जाती थी। अंधे भूंखे रह जाते और इस प्रकार कई दिन बीत गये। एक दिन अचानक से पत्नी के हाथ में बिल्ली का सिर आ गया और पता चल गया कि ये बिल्ली ही रोटी लेकर भाग जाती है। तब पत्नी खाना बनाती तो पति दरबाजे पर डंडा लेकर बैठ जाता था और जब तक रोटी बनती तब तक डंडा जमीन पर फटकारता था। इस प्रकार बिल्ली रोटियां नहीं ले जा पाती और रोजाना का यही क्रम बन गया। समय निकलता गया। अंधे दम्पति के पुत्र की शादी हो गयी और दुल्हन भी घर आ गयी। अब खाना बनाने की जिम्मेदारी नयी बहू की आ गयी। जब बहू खाना बनाती तो उसका पति डंडा लेकर बैठ जाता और अपने बाप की तरह डंडा जमीन पर फटकारता था। ऐसे ही कई दिन हो गये तो एक दिन बहू ने अपने पति को पूछा कि आप मेरे खाना बनाते समय डंडा क्यों फटकारते हैं? लडका बोला ये हमारे घर की परंपरा है। हमारे पापा भी ऐसे ही करते थे। तब बहू बोली, अरे वो तो आँख के अंधे हैं पर आप तो नहीं हैं। आपको तो दोंनों आँखों से दिखता है, फिर क्यों इस प्रकार की मूर्खता पूर्ण परंपराओं को पकङे हो? क्यों अक्ल के अंधे बन रहे हो?
• यही हालत हमारे युवाओं की है, पूर्ण रुपेण अक्ल के अंधे बने हुए हैं। बेहूदी परंपराओं को छोङने का नाम नहीं ले रहे हैं और बडे इठलाकर गर्व से कहते हैं कि ये सब हमारे पुरखों ने माना है। परंपरा में चलता आया है। इसे कैसे छोङ सकते हैं?
• आप तो पढे लिखे हैं, सही- गलत / दोस्त-दुश्मन की पहचान कर सकते हो। फिर भी परंपराओं का रोना। फिर आप और आपके अनपढ पुरखों में कोई फर्क है।
अरे ! इस मानसिक गुलामी से बाहर आओ ! अपना व अपने समाज का उत्थान करो !
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