श्रूयतां धर्म सर्वस्व श्रुत्वा धार्यताम्। आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् अर्थात जो जो गुण कर्म स्वभाव आचरण व व्यवहार आपको अपने लिए अच्छा नही लगता (पसन्द नही ) है, जिसे आप अपने साथ कराने के लिए तैयार नही हैं , वैसा प्रतिकूल आचरण व्यवहार आपको भी दूसरों के साथ कदापि नही करना चाहिए ! यही सनातन धर्म है । सभी को सादर नमस्ते
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