यदि आपके पास आज मनचाही वस्तुएँ नहीं हैं, तो निराश होने की कुछ आवश्यकता नहीं है। टूटी-फूटी चीजें जो भी हों, उन्हीं की सहायता से अपनी कला को प्रदर्शित करना आरंभ कर दीजिए। जब चारों ओर घना अंधकार छाया हुआ होता है, तो वह दीपक जिसमें दो पैसे का दीया, कुछ पैसे का तेल और मामूली-सी बत्ती है, चमकता है और अपने प्रकाश से लोगों के रूके हुए कामों को चालू कर देता है। जबकि हजारों पैसे वाली वस्तुएँ चुपचाप पड़ी रहती हैं, यह एक पैसे वाला दीपक अपनी महत्ता से अपने अस्तित्व को धन्य बनाता है।
क्या दीपक ने कभी ऐसा रोना रोया कि मेरे पास इतना मन तेल होता, इतनी रूई होती, इतना बड़ा आकार होता, तो इतना बड़ा प्रकाश करता? दीपक को कर्महीन नालायकों की भाँति मनसुबे बाँधने की फुरसत नहीं है। वह अपनी आज की परिस्थिति, हैसियत, औकात को देखता है, उसका आदर करता है और अपनी कुछ पैसों की पूँजी से कार्य आरंभ कर देता है। उसका कार्य छोटा है बेशक, पर उस छोटेपन में भी सफलता का उतना ही अंश है, जितना कि विशाल सूर्य और चंद्र के चमकने की सफलता है!
If you are not having desirable things today, nothing needs to get disappointed. Whatsoever small or big things you have, start performing your art with these only. When there is dense darkness all around, a small clay lamp which costs merely some pennies and needs oil and cotton of no costs, shines and enables people continuing their stopped and incomplete works. While precious things are kept idle, this ordinary earthen lamp makes its fate and existence so fortunate.
Did this clay lamp ever cry on its destiny if it had tonnes of oil, sacks of cotton and had such a big size, so that it might spread the wider light? No, this lamp has no time to build castles in the air like those inactive unworthy people. It believes in its present condition, status and capacity; it respects them and starts its work with this much capital of some pennies. No doubt, its duty is so small, but this smallness too has the same spirit of success as in infinite sun and moon!
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