आश्विन कृष्ण ८ वि.सं.२०७२ ५अक्टूबर २०१५
😶 “मिलकर चलो,बोलो ! ” 🌞
🔥🔥ओ३म् सं गच्छध्वं सं वो मनांसि जानताम् । 🔥🔥
🍃🍂 देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ।। 🍂🍃
ऋ० १० ।१९१ । २;
ऋषि:- संवनन : ।। देवता- संज्ञानम्: ।। छन्द:- अनुष्टुप ।।
शब्दार्थ- हे मनुष्यों !
मिलकर चलो !आचरण करो,मिलकर बोलो,और तुम्हारे मन मिलकर ज्ञान प्राप्त करें,समान ज्ञानवाले हों ; जैसेकि पहले के देव लोग मिलकर जानते हुए,एकज्ञान होते हुए भजनीय वस्तु की,अपने भाग की उपासना करते,उपलब्धि करते रहें है ।
विनय:- हे मनुष्यों !
सदा मिलकर चलो,मिलकर आचरण करो,मिलकर बोलो और तुम्हारे मन मिलकर सदा एक निश्चय किया करें । यह देवी नियम है । देव लोग सदा ‘संजानाना:’ होकर -समान मन और ज्ञान वाले होकर ही - अपने कार्य-भाग को निभाते आयें हैं । असल में यह मनों द्वारा ज्ञान की एकता ही वास्तविकता एकता है । मन की एकता होने से वचन की और कर्म की एकता होने में देर नहीं लगती । देखों,ये देव लोग सब जगह संजानाना होकर ही कार्य कर रहे है । आधिदॆविक जगत में देखों,अग्रि वायु आदि देव जगत संचालन के लिए इख्ट्ठे होकर अपने-अपने भाग को ठीक कर रेह्वं है । पैर में काँटा चुभता है तो त्वचा-प्राण–मन-हाथ आदि सब देव एक क्षण में कैसे सहयोग दिखाते है । “मिलना” दैवी प्रवृति है ; क्षुद्र स्वार्थी को ना छोड़ सकना और न मिलना आसुरी है
अत: हे मनुष्यों !
तुम मिलो अपने सैकड़ों क्षुद्र स्वार्थों को छोड़ कर एक बड़े समष्टि-स्वार्थ के लिए सदा मिलो । लाखों करोड़ों के मिलकर काम करने से तुम्हें भारी सामूहिक सिद्धि मिलेगी,उससे फलत: तुम लाखों-करोड़ों में से प्रत्येक व्यक्ति के भी सब सच्चे स्वार्थ अवश्य सिद्ध होंगें ।
अत: हे मनुष्यों ! मिलो,मिलो! सब प्रकार से मिलकर अपने सब अभीष्ट सिद्ध करो ।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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