३० आश्विन 16 अक्टूबर 2015
😶 “ पूर्ण परमात्मा ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् पूर्णात् पूर्णमुदचति पूर्णं पूर्णेन सिच्यते। 🔥🔥
🍃🍂 उतो तदद्य विद्याम यतस्तत् परिषिच्यते ।। 🍂🍃
अथर्व० १० । ८ । २९
ऋषि:- कुत्स: ।। देवता- आत्मा: ।। छन्द:- अनुष्टुप् ।।
शब्दार्थ- पूर्ण से पूर्ण उत्पन्न होता है और यह पूर्ण उस पूर्ण द्वारा सींचा भी जाता है। तो अब आज हम उस (पूर्ण) को जानें, प्राप्त करें जिस द्वारा वह (दूसरा पूर्ण) पूर्णतया सींचा जा रहा है।
विनय:- मनुष्यो! आओ, हम यह जानें कि यह संसार परिपूर्ण है। संसार की पृथक्-पृथक् वस्तुएँ बेशक अपूर्ण हैं, अधूरी हैं, त्रुटिमय हैं, किन्तु यह समूचा संसार मिलकर परिपूर्ण ही है। यदि हम संसार की परिपूर्णता को नहीं अनुभव करते हैं तो हम अभी संसार को नहीं जानते हैं। पूरी समूची दृष्टि से जब हम संसार को देख सकेंगे तो हम देखेंगे कि इस समष्टि संसार में कोई कसर, त्रुटि व कमी नहीं है और यह संसार पूर्ण क्यों न हो, जब यह पूर्ण पुरुष का रचा हुआ, पूर्ण से पूर्ण ही उत्पन्न होता है। निःसन्देह यह पूर्ण जगत् उस पूर्ण परमेश्वर से निकला है, प्रादुर्भूत हुआ है।
भाइयो! और फिर तुम यह देखो कि उस पूर्ण प्रभु ने इस पूर्ण जगत् को एक बार पैदा करके ही नहीं रख दिया है, किन्तु वह इसे लगातार सींच भी रहा है, सतत जीवन-रस पहुँचाता हुआ पालन भी कर रहा है, अर्थात् यह जगत् न केवल पूर्ण पैदा हुआ है, किन्तु पूर्ण रूप से चल भी रहा है और पूर्ण रूप से सदा चलता रहता है, इस पूर्ण माली द्वारा पूरी तरह सींचा जाता हुआ सदा पूर्णतया फूलता-फलता रहता है।
हे मेरे भाइयो! यदि हमने यह जान लिया है कि यह जगत् एक परिपूर्ण कृति है और फिर यह भी जान लिया है कि फलतः इसका कर्त्ता भी परिपूर्ण होना चाहिए, तो आओ अब हम उस परिपूर्ण को जानें पहचानें और प्राप्त करें जो पूर्ण इस पूर्ण जगत् को उत्पन्न कर इसे सदा परिपूर्णतया सींच रहा है। आओ, आओ! आज से हम उसकी खोज में निकल पड़े जो परिपूर्ण है और परिपूर्णता का देनेवाला है। आज से उस पथ के पथिक बन जाएँ जोकि हमें परिपूर्णता के पद पर पहुँचानेवाला है।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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