२१ आश्विन 7 अक्टूबर 2015
😶 “भूत और भव्य द्वारा सदैव पाप से मुक्ति ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् यदि जाग्रद् यदि स्वपत्रेन एनस्योSकरम्। 🔥🔥
🍃🍂 भूतं मा तस्माद् भव्यं च द्रुपदादिव मुञ्चताम् ।। 🍂🍃
अथर्व० ६ । ११५ । २
ऋषि:- ब्रह्मा: ।। देवता- विश्वेदेवा: ।। छन्द:- अनुष्टुप् ।।
शब्दार्थ- यदि जागते हुए यदि सोते हुए मैं पापी बन पाप करता हूँ तो उस पाप से मुझे भूत और भव्य, भूत और भविष्य का चिन्तन जैसे काठ से, पाद-बन्धन से छुड़ाया जाता है उस तरह छुड़ा देवें, मुक्त कर देवें।
विनय:- हे भूत और भव्य!
तुम मुझे सदैव पाप से मुक्त करो। मैं जागते या सोते हुए जो पाप करता हूँ, पापी बनता हूँ, उससे मुक्त करो। जाग्रदवस्था में इस स्थुल वैश्वानर-लोक में ठहरता हुआ मैं जो स्थुल पाप करता हूँ अथवा स्वप्रावस्था में सूक्ष्म तैजस लोक में रहता हुआ जो सूक्ष्म मानसिक पाप करता हूँ, उससे मैं बँध जाता हूँ। जैसे द्रुपद में, पाद-बन्धन में पड़ जाने से मनुष्य के पैर ऐसे जकड़ जाते हैं कि वे आगे हिल नहीं सकते, उसी प्रकार सूक्ष्म या स्थुल पाप कर लेने पर हमारे उन्नति के पग ऐसे रुक जाते हैं कि जबतक हमारी उससे मुक्ति न हो जाए तबतक हम आगे नहीं बढ़ सकते, उन्नत नहीं हो सकते। इससे छुटकारा पाने के लिए मैं अपने भूत और भव्य से प्रार्थना करता हूँ।मेरा भूत, अपने भूत का आत्म-निरीक्षण तथा मेरा भव्य, अपने भव्य के लिए दृढ़ निश्चय, ये दोनों मुझे पाप-बन्धन से छुड़ा देवें। पाप हो जाने पर तबतक हम उससे मुक्त नहीं हो सकते और आगे नहीं बढ़ सकते। ओह, मेरा आदिकाल से आनेवाला विशाल भूत और अनन्तकाल तक पहुँचनेवाला विशाल भव्य, इन दोनों के अपार काल-समुद्र में मैं अपनी चिन्तनरूपी डुबकी लगा कर अपने सब पाप-मैल को धो डालूँगा। मैं इस भूत के लोक-स्थूललोक के पूरे-पूरे निरीक्षण द्वारा अपने-आपको इतना कार्यदक्ष, सावधान और सदा जागरूक बनाऊँगा कि आगे के जाग्रत् के स्थुल पापों से सदा बचता रहूँगा तथा भव्य के दूसरे सुक्ष्मलोक की सहायता से इतनी मानसिक दक्षता प्राप्त कर लूँगा कि मुझसे असावधानी में बिना जाने, स्वप्रावस्था में होनेवाले मानसिक पाप भी आगे से न हो सकेंगे। एवं, यह भारी साधना कर लेने पर मेरे भूत और भव्य मुझे क्रमशः जाग्रत् और स्वप्रावस्था के पाप-बन्धनों से मुक्त करते रहेंगे, सदा मुक्त करते रहेंगे।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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