ओ३म ।
🌹मोक्ष विषय बारे स्वामी दयानंद जी के प्रमाणिक विचार (दयानंन्द ग्रन्थ माला से 🌹
👉संग्रह कर्ता:-राजिंदर वैदिक 👏
👉ये जो नवीन वेदान्ती है; अद्वैतवादी है; ये मोक्ष में जीव का लय ब्रह्म में मानते है। जैसे समुंद्र में बहुत बिन्दुओं का मिलना।–––––स्वामी जी इनकी इस बात को मिथ्या मानते है। इनके मिथ्या होने में प्रमाण देते है।
👉" यदा पंचवतिष्ठन्ती ज्ञानांनी मनसा सह । बुद्धिश्च न विशेष्टते तमहु परमां गतिम् ।।
यह कठवल्ली तथा बृहदारण्यक आदि उपनिषदों में मोक्ष का निरूपण किया है।
,“अर्थ,”“ जब जीव का मोक्ष होता है तब पांच ज्ञानिन्द्रियो का ज्ञान मन के साथ अर्थार्त विज्ञान के साथ स्थिर हो जाता है। और बुद्धि जो निश्चयात्मक वृति है सो चेष्टा न करें, अर्थार्त शुद्ध ज्ञानस्वरूप जीवात्मा परमात्मा में परमानन्दस्वरूप युक्त होके सदा आनन्द में रहता है; उसी को परमगति अर्थार्त मोक्ष कहते है।”
,“परमज्योति जो परमात्मा है; उसको अत्यंत समीपता को प्राप्त होना मोक्ष है। अविधा आदि दोषो से पृथक होके; शुद्ध युक्त होकर; ज्ञानस्वरूप होकर और स्वसमर्थ होके जीव परमात्मा से युक्त हो जाता है।(पेज–44)
👉,,"अभावम वादरिराह होवम।––– यह ननिश्चय से वादरि आचर्य का वचन है । अर्थ,” मोक्ष समय में मन को छोड़ के अन्य इन्द्रिया व् शरीर जीव के साथ नही रहते है; किन्तु मन तो रहता ही है।"
👉,“ भावम् जैमिनिविरकल्पाम्मन्नत। यह जैमिनी आचार्य का मत है। जैसे मोक्ष् में मन जीव के साथ रहता है वैसे इन्द्रियों तथा स्वशक्तिस्वरूप शरीर का सामर्थ्य भी मोक्ष में रहता है।। अर्थार्त शुद्ध स्वाभाविक सामर्थ्ययुक्त जीव मोक्ष में भी रहता है।”
👉यह वचन व्यास जी का है,“ मोक्ष में भाव और अभाव दोनों है। अर्थार्त स्थूल शरीर तथा अविधा आदि क्लेशों का अत्यन्त अभाव और ज्ञान तथा शुद्ध स्वशक्ति का भाव सदा। मोक्ष् मे बना रहता है। साच्चीदानंद आन्तस्वरूप परमात्मा के साथ सब जन्म मरण आदि दुःखों से छूट के सदा आनंद में युक्त जीव रहता है"।
👉,”“यह गौतम ऋषि का वचन है। ,"मिथ्या ज्ञान ऐसा है की जड़ में चेतन बुद्धि और चेतन में जड़ बुद्धि इत्यादि अनेक प्रकार का मिथ्या ज्ञान है। उसकी निवर्ति होने से अविधा आदि जीव के दोष निवर्त हो जाते है। दोष की निवर्ति होने से प्रवर्ति जो की विषयों की आसक्ति निवृत हो जाती है। प्रवर्ति की छूटने से जन्म छूट जाता है। जन्म के छूटने से दुःख छूट जाता है। सब दुःखों के छूटने से अपवर्ग जो मोक्ष है; वह यथावत होता है। जो दुःख है उसकी अत्यंत निवृति के होने से मोक्ष होता है।
👉इन सब प्रमाणों से सिद्ध है की मोक्ष मे जीव का लय नही होता है। किन्तु अत्यंत आनंद रूप जीव रहता है।
क्रमशः——-राजिंदर वैदिक👏
ओउम् तत्सत्।
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